कुंडलियां
१:/
भारत का दर्शन,गणित,ज्योतिष और विज्ञान ।
कभी विश्व में थे यही ,भारत की पहचान ।
भारत की पहचान,विश्वगुरु देश हमारा ।
कहाँ खो गया वह प्रतिभा का सागर सारा ?
प्रतिभाओं का हनन,राष्ट्र को करता गारत ।
कहैं “दिवाकर” नित्य पिछड़ता जाये भारत ।
२/
तलवारें हों धातु की ,जिनकी तीखी धार ।
वही युद्ध में कर सकें ,प्राणघात का वार ।
प्राणघात का वार ,शत्रु का रक्त बहायें ।
कहाँ भला नकली तलवारें यह कर पायें।
जागो मेरे देश! “दिवाकर” तुम्हें पुकारें ।
मान पा रहीं केवल ,लकड़ी की तलवारें।
———-© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी