” ऐसी जागी है जगन ” !!
ठहर जाओ बादलों
ठहर जा बहती पवन !
थम सा गया है वारिधि ,
तेरी छवि में हो मगन !!
सुर कहीं खोये हुये ,
साधना है भंग सी !
ठन रही मन में कहीं ,
है जगत से जंग भी !
मौन अधरों का निमंत्रण ,
प्यारी है लागे ठगन !!
दूर तक ठहरी नज़रें ,
थम गई पलकें मेरी !
आज अंखियन में बसी ,
दिख रही सूरत तेरी !!
मैं हुआ हूँ बावरा सा ,
मीठी है लागे लगन !!
दूरियाँ सहना कठिन ,
अंक में तुम आ बसो !
है गगन भी मुस्कराये ,
दूर से तुम ना हंसो !
तम से लड़ती ही रहे ,
ऐसी जागी है जगन !!
जिसको जो कहना कहे ,
है नहीं परवाह भी !
तुमसे लागी है लगन ,
दूजी नहीं चाह भी !
रुठी सी लागे बहारें ,
तेरे बिन मेरे चमन !!