गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल – सूखा पत्ता

कभी   दश्त  में  हूँ, कभी   राहे  गुलजार  में हूँ।
सूखा  पत्ता हूँ,  इन  हवाओं के  ईख्त्यार  में हूँ।
ये  न   समझना के   मुझ  को   पाना  है  दुश्वार,
जो चाहे   खरीद ले।  मुझे,  अभी  बाजार में हूँ।
दिल   का   सुकुं  पाने फिरता हूँ दश्ते गर्दिश में,
पापी  पेट   की   खातिर,  मगर   दरबार  में  हूँ।
मैं   ही  टपकता   हूँ   बूंद   सा   टूटे  छप्पर  से,
मैं  कुछ   नही,  हर  मजलूम  की  पुकार में हूँ।
मैं चला गया तो क्या हुआ, मेरा वज़ूद बाकी है,
रहते  हो  जहाँ  तुम, उसी  दर ओ दीवार  में हूँ।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”

*ओमप्रकाश बिन्जवे "राजसागर"

व्यवसाय - पश्चिम मध्य रेल में बनखेड़ी स्टेशन पर स्टेशन प्रबंधक के पद पर कार्यरत शिक्षा - एम.ए. ( अर्थशास्त्र ) वर्तमान पता - 134 श्रीराधापुरम होशंगाबाद रोड भोपाल (मध्य प्रदेश) उपलब्धि -पूर्व सम्पादक मासिक पथ मंजरी भोपाल पूर्व पत्रकार साप्ताहिक स्पूतनिक इन्दौर प्रकाशित पुस्तकें खिडकियाँ बन्द है (गज़ल सग्रह ) चलती का नाम गाड़ी (उपन्यास) बेशरमाई तेरा आसरा ( व्यंग्य संग्रह) ई मेल [email protected] मोबाईल नँ. 8839860350 हिंदी को आगे बढ़ाना आपका उद्देश्य है। हिंदी में आफिस कार्य करने के लिये आपको सम्मानीत किया जा चुका है। आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं. काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है ।