सफर कितना लम्बा है ये न कहो दोस्तों।
मंजिल कितनी हसीन है ये सोचो दोस्तों।
ये पथरीले रास्ते सब आसान हो जाएंगे,
दर्दे जिंदगी को नेअमत समझो दोस्तों।
खुद ही ले लेगी मंजिल तुम्हें आगोश मे,
जरा झूम के रास्ते पे कदम रखो दोस्तों।
ये मुरझाए फूल एक दिन जरुर खिलेंगे,
कुछ दिन पतझर का दर्द सहो दोस्तों।
वक्त का ये कारवां न ठहरेगा सागर
हो सके तो इसके हमराह चलो दोस्तों।
सहते हैं दर्द पतझर का ये फूल भी,
तनहाईयों में खुलकर हंसो दोस्तों।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”