बांध मुझे वह राखी तू
बांध मुझे वह राखी तू
कर्मपथ पर बढ़ता जाऊं।
अपने विजय पताका से
कुल का मैं सम्मान बढ़ाऊं।
बांध मुझे वह राखी तू
जिससे अभेद शक्ति पाऊं।
जग की हर स्त्री का
सदा ही मैं सम्मान बचाऊं।
बांध मुझे वह राखी तू
जिससे मैं अमर वर पाऊँ।
देश की रक्षा की खातिर
सहर्ष अपना सर्वस्व लुटाऊं।
बांध मुझे वह राखी तू
जिससे जीवन ज्योति पाऊं।
एक सुपुत्र बनकर मैं
मां का जीवन खूब हर्षाऊं।
बांध मुझे वह राखी तू
जिससे प्रेम की धार बहाऊं।
तेरा कन्हैया बनकर ‘दी’
सुभद्रा मैं तुझे बनाऊं।।
मुकेश सिंह
सिलापथार,असम।
9706838045