ग़ज़ल
कुछ रंजो गम के दौर से फुर्सत अगर मिले ।
आना मेरे दयार में मुहलत अगर मिले ।।
यूँ हैं तमाम अर्जियां मेरी खुदा के पास ।
गुज़रे सुकूँ से वक्त भी रहमत अगर मिले ।।
आई जुबाँ तलक जो ठहरती चली गयी ।
कह दूँ वो दिल की बात इजाज़त अगर मिले।।
सूराख कर तो देगी तेरे आसमान में ।
औरत को थोड़ी आज हिफाज़त अगर मिले ।।
अब दीन है बचा न वो ईमान ही बचा ।
गिर जाएगा वो शख्स हुकूमत अगर मिले ।।
कर लूं यकीन फख्र से तेरी ज़ुबान पर ।
मुझको तेरा ज़मीर सलामत अगर मिले ।।
ऐ जिंदगी मैं तुझसे अभी रूबरू नहीं ।
तुझको गले लगा लूँ मैं मोहलत अगर मिलें।।
हँसना किसी के दर्द पे अब सीख लेंगे हम ।
कुछ दिन हुजूऱ आपकी सुहबत अगर मिले ।।
दिल को सनम का हुस्न गिरफ़्तार कर गया ।
हो जायेगा रिहा वो ज़मानत अगर मिले ।।
पढ़ लेना आप खुद ही वफाओं की दास्ताँ ।
लिक्खा हुआ हमारा कोई ख़त अगर मिले ।।
हर आदमी बिकाऊ है बाज़ार में यहाँ ।
बस शर्त एक है उसे कीमत अगर मिले ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
(कुर्बत – अति निकट का सम्बन्ध)