गीत
यूँ न मायूस होकर के बैठो प्रिये हल सभी मुुश्किलों का निकल आयेगा।
पुष्प बनकर खिलो यूँ न मुरझाओ तुम , कौन उपवन को बरना यूँँ महकायेगा।
हाथ में हाथ तेरा रहे जो प्रिये साथ हम तुुुम रहेगेंं ये विश्वास है।
हाथ छूटा अगर हम जुदा हो गये , तो समझ लेना अपना ये बनवास है।
मैं जियूँ राम बन जानकी तुम बनो, प्रेम फिर से जहाँ में छला जायेगा ।
यूँ न मायूस होकर के बैठो प्रिये , हल सभी मुुश्किलों का निकल आयेगा ।
दूर नभ है बहुत इस धरा से प्रिये , दूरियों से मगर प्रेम कम ना हुआ।
साँस थम सी गयी मन मचलने लगा तुमको छूकर हवा ने मेरा तन छुआ।
अश्रु बनकर बहे भाव दिल के अगर मन धरा का दृवित हो के कुम्हलायेगा ।
यूँ न मायूस होकर के बैठो प्रिये हल सभी मुश्किलों का निकल आयेगा।
दोष देना यहाँ जिनकी फितरत रही थोप कर दोष हम पर चले जायेगें।
जानकी को भला छोड़ पाये नहीं मौन हम पर भला कैैैसे रह पाायेगेंं।
जीत होती है क्या हार के बिन प्रिये कौन अनुभव निराला बता पायेगा।
यूँ न मायूस होकर के बैठो प्रिये हल सभी मुश्किलों का निकल आयेगा।
प्यार पूजा है, मन्नत है, वन्दन भी है, प्यार प्रभु से मिलन का भी अहसास है।
उसकी खुशियों पे खुद को लुटा दूँ सनम प्रेम का नाम केवल यही प्यास है।
जन्म जिसने दिया वो हैं सर्वोपरी, प्रेम उनको कहो कैसे ठुकरायेगा ।
यूँ न मायूस होकर के बैठो प्रिये , हल सभी मुश्किलों का निकल आयेगा।
— शिव चाहर मयंक