कविता

कविता – मुसाफिर का मन

मन ये तेरा
परेशान क्यूँ है,
इस जग से
बेफिक्र क्यूँ है,
नित नये ख्वाब
सजा कर
मन में दबा
बैठा क्यूँ है।
पथ पर नित
आगे बढ चल
न चंद कांटो से
तू डर,
मुसीबतों को चीर
तू देख,
बिन अंधकार
चमकता सितारा
भी नही है।

ए मुसाफिर
तूँ रूकता क्यूँ है।
तू रूकता क्यूँ है।

शालू मिश्रा

शालू मिश्रा नोहर

पुत्री श्री विद्याधर मिश्रा लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि. गाँव- सराणा, आहोर (जिला-जालोर) मोबाइल- 9024370954 ईमेल - [email protected]