कविता – मुसाफिर का मन
मन ये तेरा
परेशान क्यूँ है,
इस जग से
बेफिक्र क्यूँ है,
नित नये ख्वाब
सजा कर
मन में दबा
बैठा क्यूँ है।
पथ पर नित
आगे बढ चल
न चंद कांटो से
तू डर,
मुसीबतों को चीर
तू देख,
बिन अंधकार
चमकता सितारा
भी नही है।
ए मुसाफिर
तूँ रूकता क्यूँ है।
तू रूकता क्यूँ है।
— शालू मिश्रा