कविता

कविता – मेरी माँ

मुसीबत के समंदर
में जो किनारा दे
वो है मेरी माँ,
जीने के मायने
जो सिखाये
वो हैं मेरी माँ।
औलाद उदास हो
तो मुस्कान
चेहरे पर लादे
वो हैं मेरी माँ।
लबों पे जिसके
कभी बद्दुआ
न आती
वो हैं  मेरी माँ।
हवाओं जैसी
चलती हैं
मेरी माँ।
रुक जाए तो
चाँद जैसी लगती हैं
मेरी माँ।
उसी में  नजर
आता है मुझे जन्नत
का नजारा,
वो है  मेरी माँ
का सहारा ।
रंग बिरंगी
फुलवारी  हैं
मेरी माँ,
प्रेम रूपी सागर
सी लहराती  है
मेरी माँ।
त्याग की अद्भूत
मूरत हैं
मेरी माँ।
ओस की एक
अमिट बूँद हैं
मेरी माँ।
जो साया बनकर
साथ निभाएँ,
वही जग में
माँ कहलाए।
अ खुदा कभी
दर्द न देना उस
हस्ती  को,
जिसने जमीन पर
बनाया स्वर्ग जैसी
कश्ती को।

शालू मिश्रा

शालू मिश्रा नोहर

पुत्री श्री विद्याधर मिश्रा लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि. गाँव- सराणा, आहोर (जिला-जालोर) मोबाइल- 9024370954 ईमेल - [email protected]