कहानी – उड़ान
महंगी नई कार खरीदी बेटे रजत ने, यह बात जरा भी पसंद नहीं आई पिता अमर को, गुस्से से बोले… “इसकी क्या जरूरत थी, हमने तो हमेशा ही सेकेण्ड हैंड गाड़ी से काम चलाया तुम ब्याह होते ही उड़ने लगे ”।
”पापा नाराज क्यूं हो रहे हैं , ये गाड़ी मैने आपके और मां के लिये ली है “।
“क्या सच ” !!! चेहरा प्रसन्नता से चमक उठा अमर का।
“जी पापा ” बहू ने चाबी खुशी- खुशी ससुर के हाथ में थमा दी ।
“मम्मी पापा आपने मुझे पायलट बनाने में अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी अब हम दोनों की बारी है” ।
“आसमान में मेरे साथ, मेरी फ्लाईट में और धरती पर इस कार में घूमें आप “।
चरण स्पर्श के लिये झुके बेटा बहू को, दोनो ने गले लगा लिया खुश रहो मेरे
बच्चों ।
मां आकाश की ओर देख सोच रही थीं..
रजत बचपन में कागज का हवाई जहाज उड़ाते हुऐ बेहद खुश होता था।
एक दिन आसमान में उड़ते हवाई जहाज को देख पूछने लगा वो क्या है माँ ?
हवाई जहाज है बेटा ।
मुझे भी उड़ाना है माँ ।
उसके लिये तो पायलट बनना पड़ेगा ।
तो मै भी पायलट बनूंगा मां आकाश में उड़ना है मुझे भी ।
मां ने सोचा बच्चा है धीरे -धीरे भूल जायेगा।
यह बात वह कभी भूला ही नहीं, बड़ा होता गया उतना दृढ़ता से पायलट बनने के
स्वप्न को जीने लगा और अंततः इकलौते बेटे के भविष्य के लिये पिता अमर ने बहुत मेहनत की अच्छी नौकरी में थे और बेहद मेहनती भी और बेहद कार्यकुशल भी खूब तरक्की मिलती चली गई ,पैसा एकत्रित करते रहे कुछ लोन भी लिये और पायलट बन गया रजत ।
इतना ही नहीं बहू रितिका भी पायलट है ।
रजत की बैचमेट थी प्यार हुआ और अब शादी I
क्या सोच रही हो मां ,कार पसंद नहीं
आई ?
बैटा रितिका के पापा मम्मी ने भी तो उसे पायलट बनाने के लिये बहुत पैसा खर्च किया होगा ?
और ऊपर से शादी का खर्चा भी ?
तुम कहना क्या चाहती हो अनीता ? अमर
ने पत्नी से पूछा।
यही कि रितिका और रजत को उनके लिये भी करना चाहिये ।
रितिका आश्चर्य से सासु माँ के विचारों की उड़ान देख रही थी।
अनुपमा सोलंकी
मौलिक