कहानी

कहानी – नई सुबह

प्रिया ने देखा चन्नी छ्त से घबराई हुई सी दौड़कर नीचे आई उसकी सांसे जोर-जोर से चल रहीं थीं और चेहरा लाल हो रहा था…।
” क्या हुआ चन्नी.. घबराई हुई क्यों है ”?
”कुछ नहीं मम्मी ” वह डरे हुई सीआवाज में बोली … उसके हाथ में कुछ था जिसे उसने मुट्ठी में भींच रखा था ।

मैं मां थी में समझ गई कुछ है जो वो बता नहीं पा रही … डर रही है बताने से !
“चन्नी डर मत बता क्या बात है में तो तेरी
दोस्त हूँ न …सारी बात मुझसे शेयर करती है न… डर मत में तुझे सही सलाह दूंगी.. मम्मी बनकर नहीं दोस्त बनकर” !!
उसने बड़ी आशा भरी नजरों से मुझे देखा
मम्मी ये देखो उसने बंद मुट्ठी खोल दी…
वह प्रेम पत्र था ये ” यह किसने दिया चन्नी”?
“मम्मी वो समीर के घर कई दिन से कोई मेहमान आये हैं उन्हीं अंकल आंटी का बेटा है ये ” !
“ये लड़का रोज जब में स्कूल जातीं हूँ मुझे देखता है…सीटी बजाता है और बस तक पीछा करता है.. आज छ्त पर गई तो वह बगल वाली छत पर आ गया दो छ्त फलांग कर… मुझे देखकर ,और उसने जेब से निकाल कर ये मुझे दे दिया मुझे और धमकाया …..किसी को बताना नहीं” ।
” तुझे अच्छा लगता है वो ” ?
” नहीं मम्मी वो अच्छा लड़का नहीं है ”

“तो फिर तुम चिन्ता मत करो आगे से वह तुम्हे परेशान नहीं करेगा ”।
“वो कैसे मम्मी .. क्या करोगे आप “?
” वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो चन्नी… में मम्मी हूं तुम्हारी समझीं” !
“जी मम्मी” वह निशचिंत स्वर में बोली , और मां को गले लगाकर बोली…” मॉम यू आर द बेस्ट मॉम ऑफ द वर्ल्ड” और वह अपने कमरे में भाग गई … !

और वे खो गईं अपने अतीत में ।
“मां.. …मां सुनो ” ?
”क्या है रो क्यों रही है मिनी “?
”मां वो … एक लड़का ट्यूशन में है वह मुझसे गलत बातें बोल रहा था और उसने
मेरा पीछा भी किया कह रहा था मेरी
सायकल पर बैठ जा मै तुझे घर छोड़
दूंगा ” ।
जरूर तूने ही उसे एसा करने का अवसर दिया होगा… आज से ट्यूशन जाने की कोई जरूरत नहीं है और ये स्कर्ट और
फ्रॉक पहनना बंद … मां ने दो थप्पड़ लगा
दिये थे… लड़के तो छेड़ेंगे ही… ये छोटे छोटे कपड़े पहनती है कितनी बार कहा कि सलवार कुरता पहना कर ” …
और अगले दिन से उसका ट्यूशन जाना तो बंद हुआ ही ,सहेलियों के यहाँ आना जाना भी बंद करवा दिया गया सलवार कमीज और दुपट्टा बनवा दिये गये ,स्कूल
यूनीफार्म तो उन दिनो सफेद सलवार स्लेटी कॉलर वाला कुरता और सफेद दुपट्टा ही होती थी .. पापा स्कूल छोड़कर आते और बड़ा भाई वापसी में उसे घर लेकर आता … कहीं भी अकेले जाने की इजाजत नहीं थी बाजार जाना है मां साथ
जाती… मां हमेशा टोका टाकी करती रहतीं बड़ी हो गई तमीज़ से बैठ, दुपट्टा ठीक से डाल…. छाती तान के क्या चल रही है कंधे आगे झुकाकर चल, लड़कियों को दांत फाड़कर नहीं हंसना चाहिये, बाल खोलकर नहीं घूमना चाहिये तेल लगाकर टाईट चोटी बांधा कर ….छत से इधर
उधर नहीं झांकना चाहिये… वगैरह… वगैरह भाषण दिन रात सुनने को मिलने लगे.. ।
समझ ही नहीं आता था कि गलती उस लड़के ने की थी… और सजा मुझे क्यों
मिल रही थी ।
नहीं मैं चन्नी को उस लड़के के किये की
सजा नहीं सुनाऊंगी आज और अभी समीर के घर जाकर उन्हें ठीक से समझाना होगा … कि राह चलते लड़कियों के साथ बदसलूकी और छेड़छाड़ … अपराध है और मेरी बेटी के साथ ये होगा तो मैं बर्दाश्त हरगिज नहीं करूंगी..!
उन्हे लगा जैसे आज “नई सुबह “हुई है मां
की बेटी पर विश्वास की सुबह …
और वे उठकर दृढता से समीर के घर की ओर चल दीं !

अनुपमा सोलंकी

अनुपमा सोलंकी

जन्म-१.३.१९६३ जन्म स्थान - ग्वालियर ,मध्य प्रदेश शिक्षा - स्नातकोत्तर इतिहास के. आर .जी .कॉलेज ग्वालियर , मध्य प्रदेश प्रकाशित रचनाएं - लघुकथाएं १ -सुनयना २ -देशप्रेम । नई रोशनी नई पहल साझा संकलन में Email [email protected]