सामाजिक

गाड़ियों के अतिक्रमण से कब मिलेगी सड़कों को मुक्ति ?

हम बात सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की बात करते हैं तो उसमें बहुत सारी बातें देखने को आती हैं जिसमें केवल सुधार शासन के स्तर पर नहीं की जा सकती, उनमें जनभागीदारी का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन सारी कुछ नियम कानून होने के बावजूद भी उसका परिणाम सतह पर नहीं दिखाई देता। चाहे हम कोई-सा भी क्षेत्र ले लें। हम यहां बात कर रहे हैं सड़कों के अतिक्रमण की। जिसकी जैसी क्षमता है वह अपने हिसाब से सड़क को अतिक्रमित किये हुए हैं। दिल्ली के कुछ इलाकों को छोड़ दिया जाए तो लगभग पूरी दिल्ली का यही हाल है। लोगों के पास गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह नहीं है लेकिन वे टू-व्हीलर एवं कार रखे हुए हैं। और ये गाड़ी कहां खड़ी होगी, स्वाभाविक ही है कि कहीं-न-कहीं सड़क पर ही खड़ी होगी, जहां टू-व्हीलर एवं कार खड़ी होगी वहां की सड़कें भी अतिक्रमित होगी।
एक तरह विकास का नारा अब धूमिल पड़ता दिखाई दे रहा है, अब विकास नहीं होगा बल्कि तेज विकास होगा, एक नया नारा गढ़ा गया है सरकार के द्वारा। जबकि साधारण सा सवाल है बिना रफ्तार के क्या उसे  और तेज रफ्तार दिया जा सकता है? देश की राजधानी की सड़के गाड़ियों के दबाव के आगे हांफ रही हैं, सड़कों की सांसंे अवरुद्ध हो गई हैं और जबर्दस्ती सड़कों पर बेवजह वजन बढ़ गई है। जब सारी नियामक एजेंसी सक्रिय हैं तो आखिर ऐसी हालात कैसे बन गई। स्वाभाविक है कि हमारी एजेंसी तो है लेकिन वह क्रियाशील नहीं है, वह शिथिल पड़ी हुई है। उसी का यह नतीजा है कि आज यह एक विकराल समस्या के रूप में उभरकर सामने आई है। आज बाइक एवं कार से सुविधा तो है लेकिन जब जाम में फंसते हैं तो सभी एक-दूसरे को कोसने लगते हैं।
सरकार के तरफ से या परिवहन विभाग की तरफ से ऐसा कोई नियम नहीं है कि जब तक इनके पास वाहन खड़ी करने की जगह नहीं हो, इन्हें गाड़ी खरीदने की अनुमति नहीं दी जाएगी। विडम्बना यह है कि जिसको गाड़ी क्रय करने की शक्ति नहीं है, उसे आॅटो लोन एवं ईएमआई के नाम पर बेधड़क धड़ल्ले से कोई भी गाड़ी खरीदने चाहे वह टू-व्हीलर हो या कार बेची जा रही है। इससे भी बेवजह सड़कों पर गाड़ियों का दबाव बना हुआ है। जबकि ऐसा नियम होना चाहिए कि आपके पास पार्किंग की जगह नहीं हो तो उसे नई गाड़ी खरीदने की अनुमति ही नहीं दी जानी चाहिए।
सरकार के जो भी नियम हंै उसमें संशोधन करके नया नियम बनाना चाहिए, सड़कों को इन गाड़ियों से अतिक्रमण मुक्त करने के लिए कोई पारदर्शी एवं दूरगामी नीति अपनानी चाहिए, जिससे कि सड़क पर बेवजह दबाव न हो। जिनके पास पहले से ही टू-व्हीलर या कार हैं, अगर उनके पास इसके लिए पर्याप्त पार्किंग की जगह नहीं है तो इन पर भारी-भरकम पैनल्टी लगानी चाहिए। टू-व्हीलर के लिए 4 से 5 हजार प्रति माह की राशि एवं कार के लिए 8 से 10 हजार प्रति माह होना चाहिए। पैनल्टी ऐसी होनी चाहिए कि टू-व्हीलर के लिए न्यूनतम सालाना 50,000/- (पचास हजार रुपए) एवं कार के लिए न्यूनतम 1,00,000/- से लेकर 5,00,000/- (एक लाख से लेकर पांच लाख रुपये तक, कारों की दाम के अनुसार) तक होनी चाहिए। अगर ऐसी ही या चाहे सरकार जो अपेक्षित समझे उसे लागू करें तो दिल्ली की सड़कांे पर टू-व्हीलर हो या कार उन गाड़ियों की बोझ काफी हद तक कम हो जाएगी और बेवजह जाम से भी छुटकारा भी मिलेगा। समाचार एवं अखबारों में तो कई बार सुनने में आया कि एम्बुलेंस जाम में फंसी रह गई और निकटस्थ हाॅस्पिटल तक नहीं पहुंच पाई और जाम ने उसकी जान ले ली।
एक समस्या से दूसरे समस्या किस प्रकार जुड़ जाती हैं, सड़कों पर जाम लगने से बेवजह आयातित पेट्रोल एवं डीजल की खपत अनावश्यक बढ़ जाती है इससे कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ जाता है और अंततः पर्यावरण प्रदूषित होता है और इससे लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका दूरगामी असर पड़ता है जिसके कारण वे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
सुविधा जब असुविधा का कारण बनने लगे तो समझिए की अब इसमें आमूलचूल परिवर्तन का समय आ गया है। पहले जब परिवहन की सुविधा अपेक्षाकृत अच्छी नहीं थी तो लोग यूं ही घंटों तक इंतजार करते रहते थे और अब जब परिवहन की इतनी सुविधा हो गई है तो लोगों को चलने के लिए सड़क पर रास्ता ही नहीं मिल रहा है। सड़क है तो जरूर लेकिन यदि मुख्य सड़कों को छोड़ दी जाए तो  मुख्य सड़कों को जोड़ने वाली सड़कों की हालत बड़ी भयावह है। सड़कांे पर चलने से ज्यादा तो सड़क अतिक्रमित हुआ पड़ा है। टू-व्हीलर एवं कार से लोगों को आने-जाने में सुविधा तो होती है लेकिन इस सुविधा का आलम यह है कि जितना समय उन्हें आने-जाने का लगना चाहिए उससे ज्यादा समय जाम में फंसे रहने के कारण बर्बाद हो जाता है। जब तक इस मामलें में डंडे के बल पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक दिल्ली के सड़कों को इन अतिक्रमण करने वालांे गाड़ियों से मुक्ति नहीं मिलेगी। इससे कार्बन उत्सर्जन भी कुछ कम होगा, पर्यावरण भी शुद्ध एवं स्वच्छ होगा।
यह सड़क से ही जुड़ा हुआ दूसरा महत्वपूर्ण अतिक्रमण है। यहां मकान नीचे 50 गज की रहती है, वह ऊपर जाकर 75 गज की हो जाती है। लोगों के अपने मकान के सीढ़ी एवं बालकोनी का हिस्सा सड़क की ओर निकला हुआ है, यह बहुत ही साधारण-सा उदाहरण है। कमोवेश यही हाल जिसकी मुख्य सड़क से लगी हुई दुकान है वह अपना सीढ़ी एवं नाली का हिस्सा तक पटरी लगाकर छोटे स्तर पर व्यापार करने वाले लोगों को किराये पर दे दिया करते हैं।
दुकान के बाहरी हिस्सों पर यह अतिक्रमण दिल्ली के लगभग सभी क्षेत्रों में हैं और इस तरह की छोटे-मोटे सड़क पर दुकान चलाने वाले एक निश्चित धन राशि बंधी-बधाई नगरनिगम के कर्मचारी एवं पुलिस को भी देते हैं। ऐसा नहीं है कि इनका यह एक दिन का कारोबार है या सिर्फ त्योहार के समय किया जाता है, ये कारोबार तो इनके जीवन-यापन का हिस्सा है। बावजूद इसके सरकार इनके लिए कोई दूरगामी उपाय करने में विफल है। पूरे देश में इस तरह के व्यापार करने वालों से कर्मचारी एवं पुलिस हर महीने करोड़ों रुपये वसूल करती है और अगर सालाना इनका लेखा-जोखा किया जाए तो कई अरबों में पहुंच जाएगा। इतनी बड़ी धनराशि इन छोटे तबकों के लोगों द्वारा व्यय किया जाता है और इसको उसूलने वाले अधिकारी मौजमस्ती किया करते हैं। और सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि यह राशि सरकार के बही खाते मंे भी नहीं जाती है, न इसका कोई लेखा-जोखा है। आखिर इसका उपाय क्या है? क्या इसका उपाय सरकार कर पायेगी? या इस तरह की कुव्यवस्था ऐसी चलती रहेगी, सरकार तक इनकी पहुंच नहीं है तो इनसे जुड़े मामलों को नहीं सुना जाएगा। आखिर इन लोगों की सुनवाई कहां होगी? इनके मामलों को कौन सुनेगा? सड़कों पर अतिक्रमण का यह भी एक गंभीर मामला है। इसके लिए भी कोई दूरगामी नीति बनानी चाहिए, जिससे पटरी वाले अपना व्यापार भी चला सके, सड़कें सिर्फ चलने के लिए हो, न कि वह गाड़ियों की पार्किंग का अड्डा बने और सड़कों का अतिक्रमण भी न हो।
इस समस्या से निजात पाने के लिए माननीय प्रधानमंत्रीजी को पत्र लिखा था, पत्र के प्रत्युत्तर में पीएमओ द्वारा मुझसे सुझाव मांगा गया था। पत्र को आलेख के रूप में रखकर आपके समक्ष रखने का प्रयास है जिसे इस विकराल समस्या पर ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो सके और इसका कोई हल निकाला जा सके। देखिए! आपको कब तक इस समस्या से निजात मिलती है या फिर यह भी फाइलों में उलझकर ही रह जाती है। आशा रखिए, उम्मीद पर भी दुनिया कायम है, आज नहीं तो कल कोई न कोई अवश्य इस भयावह समस्या से मुक्ति दिलाएगा। बस! पहल करने की देर है देखिए यह पहल सरकार के स्तर पर होता है या न्यायालय के हथौड़े के बल पर।

बरुण कुमार सिंह

बरुण कुमार सिंह

लेखक परिचय: बरुण कुमार सिंह शिक्षा: ‘विभिन्न सम्प्रदायवाद एवं राष्ट्रवाद पर शोध’: काशी प्रसाद जयसवाल शोध संस्थान, पटना स्नातकोत्तर (इतिहास): बी. आर. अम्बेदकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा: महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा स्वतंत्र लेखक, विभिन्न पत्र-पत्रिका व वेबपोर्टल के लिए लेखन। पता- 10, पंडित पंत मार्ग नई दिल्ली-110001 मो. 9968126797 ई-मेल: [email protected]