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चिमनलाल चुटकुलेवाला

(पर्दा खुलने पर एक वृद्धाश्रम का दृश्य। वृद्वाश्रम के एक कमरे में शायर शंकरलाल, मास्टर मनीराम, लख्मीचंद और घनश्यामदास साहित्यिक गोष्ठी कर रहे हैं।)
मनीराम – हां भाई शंकरलाल बोल आज तू क्या पढना चाहता है।
शंकरलाल – मैं आज कविता पढंूगा।
घनश्यामदास – जो भी घर से रूठता है कवि बन जाता है।
(सब हंसते हैं)
लख्मीचंद – हँसो मत यार, बिचारा डिस्करेज हो जाएगा।
शंकरलाल – कितनी भी मजाक उडा लो मुझे कोई फरक नहीं पडने वाला है। मैं तो कविता पढंूगा कोई सुने या नहींे सुने।
मनीराम – पढ रहा है तो पडने दो न यार…. मना क्यों कर रहे हो।
लख्मीचंद – कविता पढना शंकरलाल का फंडामेंटल राईट है।
शंकरलाल – पढूं?
लख्मीचंद – हां पढ……।
शंकरलाल – तो अर्ज किया है…..।
चाँद फिर छुप गया चाँदनी रात में
दिल मेरा फिर जला चाँदनी रात में
सब – वाह वाह…. बहुत ही बढिया……।
शंकरलाल – आगे लिखा है….।
साँसे आधी बची जिस्म में अब मेरे
बुझ रहा दिल मेरा चाँदनी रात में
लख्मीचंद – वाह वाह बहुत ही मस्त ख्यालात हैं यार। और उन ख्यालातों को शब्दों में पिरोना तो कोई तुझसे सीखे।
घनश्याम – शब्दों का तो खजाना है शंकर के पास खजाना।
शंकरलाल – धन्यवाद दोस्तों।
मनीराम – इस कविता में कामेडी का तडका लगता तो और मजा आता था न।
लख्मीचंद – जैसे चिमनलाल लगाता है। भले ही चुटकुला सुनाएगा पर मजा आ जाता है।
शंकरलाल – आज चिमनलाल क्यों नहीं आया है?
मनीराम – बैठा होगा पार्क की बेंच पर अकेला…।
घनश्याम – क्या आदमी है यार, यहां महफिल जमी हुई है और वो…..
शंकरलाल – मास्टर, चिमनलाल को फोन तो लगा।
घनश्याम – हां, उसको बोल जल्दी आजा….।
मनीराम – (फोन लगाकर) चिमनलाल कहां है यार…. यहां सब तेरे चुटकुले सुनने के लिए तरस रहे हैं…….अरे छोड पार्क को। शाम को मिलकर वाकिंग करेंगे …. अच्छा … हा हा हा हा (हँसता है) मजा आ गया यार….. हां हां ठीक है …. अच्छा चुटकुला नंबर बारा….. (हँसता है) तू आ तब तक मैं सबको चुटकुला नंबर बारा सुनाता हूं (फोन बंद करके) इससे बात करो ना तो हंस हंस के पेट में दर्द हो जाता है……।
शंकरलाल – तभी तो हमने उसका नाम ही रखा है ‘‘चिमनलाल चुटकुले वाला’’
लख्मीचंद – चुटकुला नंबर बारा कौनसा है?
मनीराम – चिमनलाल के चुटकुलों की किताब ‘‘चुटकुलों की चटनी’’ में बारह नंबर पर कौनसा चुटकुला है ? याद नहीं है।
लख्मीचंद – नहीं….।
मनीराम – तो सुन, एक बार चिमनलाल एक इंट्रेस्टिंग नावेल पढ रहा था उसकी धर्मपत्नी बैठे बैठै बोर हो रही थी…. उसने उठकर चिमनलाल का नावेल छीना और कहा….सारा दिन नावेल में आंखें गढाए बैठै हो …. मेरी तरफ भी तो देखो।
घनश्याम – अच्छा… फिर चिमनलाल ने क्या कहा?
मनीराम – चिमनलाल ने कहा कि ये नावेल मैं तुझे कैसे दे सकता हूं। ये तो मेरी जान है जान.. … इसपर भाभीजी ने पूछा अगर ये जान तो मैं कौन हूं? चिमनलाल ने कहा …. तू, तू, जान की दुश्मन है दुश्मन…
(सब हंसते हैं)
मास्टर – ऐसे हैं हमारे चिमनलाल जी के चुटकुले….
(चिमनलाल प्रवेश करता है।)
घनश्याम – आओ भाई चिमनलाल ….. कम से कम सौ साल उमर है तेरी। अभी अभी सबको चुटकुला नंबर 12 सुनाया है।
चिमनलाल – सारी यारो, आज पता नहीं क्यों यहां मन नहीं लग रहा था तो सोचा पार्क में घूम आता हंू। याद ई नहीं रहा कि आज हमने साहित्यक बैठक रखी है। दोनों कान पकडकर माफी मांगता हूं।
शंकरलाल – देर आयद दुरूस्त आयद….. तो दोस्तो अब बारी है मास्टर मनीराम कीे…..।
चिमनलाल – मास्टर तो कहानी लेकर आया होगा।
लख्मीचंद – हां मिनी कहानी।
चिमनलाल – मिनी कहानी तो मास्टर की स्पेशियलिटी है।
मास्टर – कहानी लिखी है पर अधूरी है। आज मुझे माफ कर दो अगली बार पूरी करके आऊंगा और फिर पढूंगा….।
शंकरलाल – जितनी लिखी है उतनी ही पढ ले यार हो सकता है हम तेरी कहानी पूरी करने में तेरी कुछ मदद कर सकें।
मनीराम – एक बार पूरी कर लूं फिर आप लोग जितनी चाहे कमियां निकालने।त्मूतपजम करने में टाइम लगता है क्या?
घनश्याम – मास्टर, चिमनलाल के चुटकुले को माक्र्स नहीं दिया।
मनीराम – दस में से दस।
शंकरलाल – चलो अभी चिमनलाल की बारी।
चिमनलाल – मास्टर की बात निकली है तो मैं भी मास्टर पर ही एक चुटकुला सुनाता हूं। हमारे मास्टर ने अपने शागिर्द से पूछा … हर मर्द की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है। इसका मतलब क्या होता है? शागिर्द ने कहा इसका मतलब ये है कि जिंदगी में सफल होना है तो पढाई लिखाई छोडकर लडकियों के पीछे घूमना चाहिये।
(सब हंसते हैं)
लख्मीचंद – मास्टर तेरे पास इसका कोई जवाब है।
चिमनलाल – एक और चुटकुला – एक क्लर्क दो तीन दिन छुट्टी मनाकर आफिस पहुंचा तो बँास ने पूछा ‘‘एक बात तो बता क्या तू इस बात पर विश्वास करता है कि मरने के बाद इन्सान को फिर से मनुष्य जनम मिल सकता है? क्लर्क ने कहा बिल्कुल नहीं सर ऐसा कैसे हो सकता है। बास ने कहा होता है ना। तू जिस चाचा की मौत की छुट्टी लेकर गया था न, वो तेरे से मिलने यहां आया था।
(फिर सब हंसते हैं)
मनीराम – वैसे तो चिमनलाल को दस में से दस माक्र्स देनी चाहिये थी। चूंकि इसने हम मास्टर ों की मजाक उडाई है इसलिए इसकी एक मार्क कट…..।
चिमनलाल – धन्यवाद।
शंकरलाल – हां भाई और कोई अपनी रचना पढना चाहता है क्या?नहीं तो आज की सभा करें समाप्त.
(वृद्वाश्रम का मँनेजर कुंदन प्रवेश करता है।)
कंुदन – चिमनलाल दादा आप यहां बैठे हो! मैं आपको पार्क में ढूंढ रहा था। ये लो आपकी ड्रेस और ये 2000 रूपए…. आपका बेटा आया था कहने लागा अगले हफ्ते पापा का बर्थ डे है।
चिमनलाल – मनीष आया था, मेरे से मिला भी नहीं…।
कुंदन – कह रहा था जल्दी में हूं। आज बच्चों को घुमाने ले जा रहा है कुलू मनाली।
चिमनलाल – (मनीराम को) देखा मास्टर …. बेटे को बाप से मिलने का समय नहीं है।
मास्टर – दिल पे मत ले यार। घूमने जा रहा है ना उसीकी तैयारियों में बिजी होगा।
चिमनलाल – तू मुझे दिलासा दे रहा है ना।
शंकरलाल – ये मत सोच कि शिकायतें कितनी हैं तुझसे ऐ जिंदगी,
बस इतना बाता कोई नया सितम तो करने वाली नहीं है ना।
लख्मी – हम कर भी क्या सकते हैं। एक ही राह के राही हैं सब लोग।
चिमनलाल – (कुंदन से) और कुछ कहा क्या उसने।
कुंदन – बहुत जल्दी में थे। कार का दरवाजा भी बंद नहीं किया। वहीं से हार्न बजाकर मुझे बुलाया…।
चिमनलाल – अकेला आया था…।
कुंदन – पूरी फैमिली साथ में थी।
चिमनलाल – उसको बोलना तो था मेरे से मिलने के लिए।
कुंदन – बीते दस वर्षों से इस वृद्वाआश्रम में हूं चिमनलाल जी आप सब बूढों की हालत देखी है मैंने।
लख्मीचंद – फिर भी तेरा बेटा याद तो कर रहा है ना। मेरे तो दोनों बेटै फॉरेन चले गए हैं। फोन के लिए भी तरस जाता हूं।
( रोता है। सब लोग उसे मनाते हैं।)
मास्टर – देख यार। हसते हुए माहौल को खराब मत कर।
चिमनलाल – इतना घमंड किस बात का कि इन्सान माता पिता के एहसानों को ही भूल जाए।
शंकरलाल – छोड न यार। (कुंदन सेे) दोपहर में कौनसी सब्जी खिला रहा है कुंदन।
कुंदन – सब्जियां लेकर मीना को काम पर लगाया है।आज तो ताराचंद की मनपसंद सब्जी बनेगी पालक छोला।
घनश्याम – अच्छा। तो ताराचंद का जन्म दिन है आज। फिर तो बहुत मजा आएगा यार।
लख्मीचंद – अगले हफ्ते चिमनलाल का जन्म दिन है, उस दिन नान वेज बनना चाहिये। क्यों चिमनलाल (चिमनलाल की तरफ देखता है। चिमनलाल मोबाईल लगा रहा है) किसको फोन लगा रहा है चिमनलाल?
चिमनलाल – एक दोस्त है काँलेज कालेज के दिनों का। कई वर्षों से मिला ही नहीं है।
मास्टर – फोन भी नहीं अटेंट कर रहा है क्या?
चिमनलाल – नहीं……उसका फोन स्विच आफ दिखा रहा है।
मास्टर – यारों से छुपाएगा। सच बता अपने बेटे को फोन लगा रहा है ना। बोल….. हमसे झूठ….।
चिमनलाल – (रोते हुए ) क्या क्या नहीं किया मैंने बेटे के लिए।
घनश्याम – जो माता पिता औलाद की खुशी और तरक्की के लिए अपना पूरा जीवन दांव पर लगा देते हैं ना उनको ही बुढापे में वृद्वाआश्रम का सहारा लेना पडता है।
शंकरलाल – गल्तियां की हैं तो भुगतना तो पडेगा ही।
घनश्याम – हां यार, बच्चों का फ्यूचर बनाने के चक्कर में हम लोगों ने अपना फ्यूचर ही फ्यूज कर दिया।
मनीराम – जिंदगी ने ऐसा इम्तहान लिया कि दस में से जीरो मार्क पर लाकर खडा कर दिया।
शंकरलाल – (पीठ दिखाते हुए) ये देखो, मेरे दोनों बेटों ने मेरा क्या हाल किया है। मुझसे जबर्दस्ती सही लेकर मेरा मकान अपने नाम कर दिया।
घनश्याम – मेरी धर्मपत्नी को गुजरे दस साल हो गए हैं। मेरे भी दोनो बेटे फारेन में रहते हैं। अच्छे पैसे कमाते हैं पर बाप को देले के लिए धेला भी नहीं है। बच्चे तो फारेन चले गए तो अकेला धंधा नहीं संभाल सका। बंद कर दिया।बहू कहती है इतनी अच्छी सेहत है।खुद कमाओ खुद खाओ, हमारे भरोसे क्यों बैठे हो?
लख्मीचंद – ऐसी औलाद को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
मनीराम – ऐसे बच्चों को सार्वजनिक रूप से मीटिंग बुलाकर एक्सपोज करना चाहिये।
शंकरलाल – उसी डर से तो फारेन भाग गए हैं (चिमनलालअ सेे) चिमनलाल यार, तू भी पंचायत बुलाकर अपने बेटे से अपना हक क्यों नहीं मांगता?
चिमनलाल – नहीं यार, बिना मतलब बच्चों को बदनाम मरना। मुट्ठी बंद ही रहे तो अच्छा हैे….।
मनीराम – बस यही सोचकर ही हम अपने पैरों पर कुल्हाडी मारते हैं। बच्चों का च्च्थ् बनाने के चक्कर में अपना च्च्थ् भूल जाते हैं।
घनश्याम – च्च्थ्याने पब्लिक प्राविडंट फंड।
मनीराम – तूू तो बुधूराम का बुधूराम ही रहेगा। च्च्थ् याने पास्ट,पे्रजेंट और फ्यूचर।
शंकरलाल – हां यारो, मास्टर कह तो सही रहा है। हमको अपने बारे में भी सोचना चाहिये था। हमारे भी कुछ अरमान हैं कि नहीं। सारी उमर कम्प्यूटर डिवाइस के समान सवेरे से रात तक काम करते रहे। बच्चे हमको कम्प्यूटर समझकर बटण दबाकर कमांड देते रहे और हम उनके कमांड के हिसाब से काम करते रहे। एक डिमांड पूरी हुई नहीं कि दूसरी पहले से ही तैयार रहती थी। बिना लिबास आए थे इस जहां में, बस इक कफन की खातिर, इतना सफर करना पडा।
चिमनलाल – (हँसते हुए) शंकर ने मिसाल तो बिल्कुल सही दी है।
लख्मीचंद – चलो, इसी बहाने चिमनलाल हंसा तो सही।
मनीराम – दूसरों को हंसाने वाला आह खुद उदास बैठा है।
शंकरलाल – इस बात पर एक चुटकुला हो जाए चिमनलाल।
चिमनलाल – अच्छा याद आया। पती पत्नी आपस में झगड रहे थे।
शंकरलाल – हमेशा की तरह।
चिमनलाल – हां, पत्नी ने कहा ‘‘अजी सुनते हो जिस पंडित ने हमारी शादी करवाई थी ना, वो आज मर गया।’’ इस पर पति कहता है ‘‘अच्छा हुआ, उसे अपने कर्मों का फल तो भुगतना ही था ना…। हमारी शादी जो करवाई थी।
(सब हंसते हैं)
(सीन समाप्त)
सीन नं. 2
(चिमनलाल के घर का दृश्य। चिमनलाल मोबाइल पर अपने जूनियर से बातें कर रहा है।)
चिमनलाल – डोंट वरी माइ ब्याँव। एवरी थिंग विल बी आल राईट। यू आर डूइंग वेरी वेल। माइ बेस्ट विशेज फार यूअर न्यू असाइनमेंट। मूझे खुशी कि मैं ऐक ऐसे इन्सान का मेंटर रह चुका हूं जो अपना फर्ज पूरी ईमानदारी और होशियारी से निभा रहा है।
(मीनाक्षी प्रवेश करती है)
मीनाक्षी – (अंदर आते हुए) पापाजी….।
चिमनलाल – मैं तेरे से बाद में बात करता हूं बेटा (फोन बंद करके मीनाक्षी से) बोल बेटा।
मीनाक्षी – पापाजी आपको कितनी बार समझाया है कि डाली को गंदी आदतें मत डालो। पर आपको कोई बात समझ में ही नहीं आती है। बच्चों को लाड करते हो फिर सर पे चढ जाते हैं। आपका क्या है, तकलीफ तो हमको होती है न।
चिमनलाल – बेटा बता तो सही हुआ क्या है ?
मीनाक्षी – अपनी आंखों से चलके देखो। पूरी दीवारें खराब कर रखी हैं। कहती है दादाजी ने कहा था कि किसी भी प्रश्न का उत्तर लिखकर देखने से ही अच्छी तरह समझ में आता है। दादाजी ने कैलकूलेटर चलाने से मना किया है।
चिमनलाल – ठीक ही तो किया मैंने। बच्चे का बेसिक क्लीअर करना है तो उसे प्रँक्टीस तो करवानी ही पडेगी ना।
मीनाक्षी – दीवाल पर प्रेक्टिस करते हैं?
चिमनलाल – मैंने तो उसे नोटबुक में प्रेक्टिस करवाई थी। मुझे क्या पता कि वो दीवाल पर प्राब्लम्स साल्व करेगी।
मीनाक्षी – मैं तो परेशान हो गई हूं आपसे। खुद तो खाली बैठे हो बच्चों को भी बिगाड रहे हो। मेंटर बनने का इतना ही शौक है तो बाहर जाकर बनो। घर के लोगों को परेशान मत करो।
चिमनलाल – बेटा छोटी उमर में बच्चे का हतंेचपदह चवूमत अच्छा होता है। उसके
ब्वदबमचजे अभी से ब्समंत होंगे तो आगे जाकर उसे तकलीफ नहीं होगी।
मीनाक्षी – स्कूल में आते हैं, फिर ट्यूशन पर जाते हैं, वो क्या कम है। उन्हे ज्यादा ज्ञान बांटने की कोई जरूरत नहीं है।
चिमनलाल – सारी, आगे से ऐसी गल्ती नहीं होगी बेटा।
मीनाक्षी – यं भी सवेरे से पता नहीं कहां चले गए हैं। पता भी है दीवाली नजदीक आ रही है। घर में बहुत सारा काम पडा है। ऐसा करो आप ही सब्जी ला दो।
चिमनलाल – बता कौनसी कौनसी सब्जी लानी है…।
मीनाक्षी – जो लाना है लेकर आओ। पर चुन चुनकर अच्छी सब्जी लाना। नहीं तो जो सब्जी दुकानदार तौलकर देगा लेकर आ जाओगे। ये आपकी पुरानी आदत है।पिछली एक पाव धनिया लाए, आधा तो फेकने में गया।
चिमनलाल – मैं तो अपने हाथों से चुनकर सब्जी लाता हूं पर मेरी लाई हुई कोई चीज तुझे पसंद नहीं आती तो मैं कया कर सकता हूं।
मीनाक्षी – इसीलिए तो आपको कोई काम नहीं बताती हूं। पर क्या करूं अकेली हो गई हूं।
चिमनलाल – इस बार ध्यान रखूंगा।
मीनाक्षी – आते आते किराने वाले से नमक भी लेकर आना।
चिमनलाल – ठीक है।
(चिमनलाल बाहर जाता है।)
मीनाक्षी – डाली-डाली…।
(मीनाक्षी और मनीष की आठ साल की बेटी डाली अंदर से आती है।)
डाली – (अंदर से आते हुए) जी मम्मी।
मीनाक्षी – फिर कोई शरारत तो नहीं कर रही है ना।
डाली – नहीं मम्मी…. सारी मम्मी।
मीनाक्षी – परेशान कर दिया है तुम सबने। ये डिक्शनरी क्यों हाथ में ली है।
(मनीष प्रवेश करता है।)
डाली – दादाजी ने कहा था किसी अक्षर की मीनिंग नहीं समझे तो इस डिक्शनरी में देखना। दादाजी ने मुझे डिक्शनरी पढना सिखाया है। दादाजी कहां है….।
मीनाक्षी – उफ् दीज आरथोडाक्स पीपल.. पापा के मोबाइल में इंटरनेट है। विकीपीडिया में सभी ूवतके की मीनिंग मिल जाएगी… आगे से कोई बात समझ में नहीं आए तो मुझसे या पापा से पूछ लिया कर समझी। दादाजी की चमचागिरी करने की कोई जरूरत नहीं है। (मनीष से) सवेरे सवेरे कहां चले गए थे आप भी। बताकर भी नहीं जाते। कम से कम मोबाइल तो साथ में लेकर जाया करो।
मनीष – थोरी शांति रख। सब बताता हूं।
मीनाक्षी – आपके बाप को भेजना पडा सब्जी लेने के लिए। बता देती हूं, समझा दो अपने बाप को कि मेरी बेटी को पुराने जमाने की आदते न डाले।
मनीष – हुआ क्या ? क्यों इतना जोर से चिल्ला रही हो।
मीनाक्षी – हुआ क्या ? मैथमैटिक्स के प्राबलम्स साल्व करने के लिए उसे कैलकूटर यूज करने नहीं देता। किसी इ्रग्लिया वर्ड की माना देखनी है तो कहता है डिक्शनरीअ में जाके देखो। इंटरनेट पर मत देखो। माबाइल को तो हाथ ही नहीं लगाने देता है।
मनीष – सही तो कर रहा है। मीनाक्षी डाली उसकी पोती ही। अभी उसकी उमर ही क्या है। मोबाइल दो तो खेलने बैठ जाती है। इंटरनेट पर बिना मतलब की साइटस खोलकर बैठ जाती है।
मीनाक्षी – आप भ्ज्ञी लगे उसकी तरफदारी करने। अपनी बीबी पर तो विश्वास ही नहीं है ना।
मनीष – तू नहीं समझती यार। इस उमर में बच्चों को भटकते देर नहीं लगती। पापा जो कर रहे हैं, साच समझकर ही कर रहे होंगे।
मीनाक्षी – और मुझे तो जैसे अकल ही नहीं है न….
मनीष – अब ये मैं कैसे बोल सकता हूं?

मीनाक्षी – चलो अब मुझे पंखा साफ करके दो।
मनीष – अरे यार थककर आया हूं।थोरी देर आराम कर लूं फिर करके देता हूं….।
मीनाक्षी – फिर कब करोगे?…… पहले पंखा साफ होगा फिर बाई से फर्शी साफ करवाऊंगी ना.. .. वो क्या तुम्हारे लिए बैठी रहेगी?
मनीष – एक तो सवेरे सवेरे पालिसी नहीं देकर ग्राहक ने मूड खराब कर दिया।ऊपर से ये…..
मीनाक्षी – ग्राहक ने मूड खराब किया तो उसमें मेरी क्या गल्ती है।
मनीष – तू कभी मेरे से प्रेम से बात नहीं कर सकती?
मीनाक्षी – देखो अभी आप मुझे ज्यादा गुस्सा मत दिलाओ हां।
मनीष – क्या कर लेगी…….?
मीनाक्षी – क्या करूंगी? मैं कुछ भी कर सकती हूं। पत्नी हूं तुम्हारी….।
(डाली दरवाजे के किनारे खडी सारी बातें सुन रही है।)

डाली – दादाजी आएंगे तो उनको बताऊंगी कि मम्मी पापा झगडा कर रहे थे।
मीनाक्षी – तु यहां क्यों खडी है चत अंदर…. दादाजी की चमची….
(डाली अंदर जाती है।)
मनीष – उस बच्ची को क्यों डांट रही हो….।
मीनाक्षी – आप दोनों बाप बेटों के समान सर पर नहीं चढाऊंगी उसको।
मनीष – तेरे से तो बात करना ही बेकार है….। पता नहीं किस घडी में तेरे से शादी करने का विचार आया…. गल्ती से भी सां लव मैरिज नहीं करनी चाहिये।
मीनाक्षी – क्यों की ?
मनीष – (दोनों हाथ जोडकर) एक बार गल्ती हो गई….. अब कभी ऐसी गल्ती नहीं करूंगा

मीनाक्षी – तू ही आया था न मेरे बाप के पास। कैसे हाथ जोडकर रिक्वेस्ट कर रहा था….. मैं आपकी बेटी से बहुत प्यार करता हूं।उसके बिना मैं एक मिनट भी नहीं रह सकता।
मनीष – वो तो एक पैर पर तैयार बैठे थे तुझे घर से निकालने के लिए।
मुझे क्या पता था कि वो झट से हां कर देंगे।
मीनाक्षी – तेरे मां बाप के समान थोडे ही। आखरी तक दोनों बुढ्ढों ना हां नहीं बोली।आखिर हमें कोर्ट में जाकर शादी करनी पडी।
मनीष – अच्छा हुआ। तेरे रिश्तेदारों की कितनी बचत हो गई। दहेज भी नहीं देना पडा उनको।
मीनाक्षी – और जब बीबी गुजर गई तो झक मारकर हमारे पास ही आया ना।
मनीष – आया तो क्या हुआ। बाप है मेरा।
मीनाक्षी – बाप है तो रहे ना अकेला। उस समय कैसे बोल रहा था। इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है ‘‘कोर्ट में शादी करके तुमने मेरे पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी है।
मनीष – अपने मां बाप की इकलौती संतान हूं। उनके अरमान थे कि धूमधाम सां बेटे की शादी करवाएंगे। पर गल्ती मेरी ही थी। मेरी आंखों पर तेरी खूबसूरती का नशा छाया हुआ था। काश…. उस वक्त मैं मम्मी पापा की सुनता तो आज ये नौबत नहीं आती थी।
मीनाक्षी – तो आज भी छोडकर आओ ना। रहो जाके बाप के साथ अकेले… (रोते हुए) देखती हूं मेरे बिना कैसे घर चलाते हो।
मनीष – गल्ती हो गई बाबा। माफ कर दो। ये देख दोनों कान पकड लिए। (दोनों कान पकडता है) तू कहे तो उठक बैठक भी करूं।
(उठक बैठक करता है)
मीनाक्षी – (हंसते) आपकी यही अदा मुझे बहुत पसंद है। झट से माफी मांग लेते हो। इसी अदा पर तो फिदा हुई थी मैं।
मनीष – चलो इस बात पर चाय पिला तो थकावट दूर हो जाए।
मीनाक्षी – मैं क्यों पिलाऊं? खुद बनाकर पियो। कम से कम छुट्टी के दिन तो आराम करने दिया करो।अपनी चाय भी बनाओ और मेरे को भी पिलाओ।
मनीष – मैं चाय बनाऊंगा तो उसमें भी दस गल्तियां निकालेगी तू। शक्कर कम है। चाय पूरी तरह नहीं उबाली है। मुझे कडक चाय ही अच्छी लगती है। कम से कम कपबस्सी तो अच्छे से धोया करो। तू तो गल्तियों की दुकान है। घर का कोई काम नहीं आता है तुझे वगैरह वगैरह।
मीनाक्षी – भलाई का जमाना नहीं है। अरे ये सब मैं तुझे सिखाने के लिए बोलती हूं ताकि मैं कभी मायके जाऊं तो तू होटल में नहीं जाए। खुद ही घर का काम करे।
मनीष – तेरे को न टीचर बनना चाहिये था।
मीनाक्षी – शादी के बाद तुम कितने बदल गए हो। शादी का फैसला हम दोनों ने मिलकर लिया था। मुझे अच्छी तरह याद है वो दिन जब तेरे मां बाप ने हमें घर से निकाल दिया था। तूने सीना तानकर कहा था ‘‘मीनाक्षी, तू मेरे साथ है तो मुझे किसी भी बात की परवाह नहीं है। मां बाप तो क्या पूरी दुनियां भी मेरे से रूठ जाए न तो भी मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। तू ही मेरी आराधना है,अर्चना है, पूजा है।’’
मनीष – उस समय मेरे को तेरे स्वभाव के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था।
मीनाक्षी – (गुस्से में) क्यों क्या हुआ है मेरे स्वभाव को?
मनीष – तेरे मन में ना हमेशा एक तूफान मचा रहता है। शांत मन से विचार कर कि तू क्या कर रही है। जहर भर रखा है तूने अपने मन में। तू उस शख्स से नफरत करती है जिसने मुझे जनम दिया है। मेरे पिताजी का इस घर पर उतना ही अधिकार है जितना कि तेरा।
मीनाक्षी – नहीं, हरगिज नहीं….. इस घर पर सिर्फ और सिर्फ मेरा अधिकार है। तूने और मैंने बहुत सारे कष्ट उठाकर ये फ्लैट लिया है। एक फूटी कौडी भी नहीं दी थी तेरे बाप ने। धक्के देकर घर से बाहर निकाला था हम दोनों को।
मनीष – आर यू आल राईट मीनाक्षी…।
मीनाक्षी – येस आइ एम परफेक्टली आल राईट।
मनीष – एक पढी लिखी लडकी ऐसी दकियानूसी बातें कर रही है।
मीनाक्षी – तेरा बाप तो सारी उमर अपना मकान तक नहीं बना पाया। आज भी उसको पूरे दस हजार पेंशन मिलती है, एक पाई नहीं देता हमको। मुफ्त की रोटियां तोडता रहता है।
मनीष – मैं कमा रहा हूं ना…..
मीनाक्षी – इसी बात का तो गम है न। 12 साल हो गए हैं रिटायरमेंट को। घर में खाली बैठने से तो कहीं जाकर नौकरी ही कर लेता। आपको क्या है परेशान तो मैं होती हूं न उसकी फरमाइशों से।
मनीष – तू जब तक मेरे बाप को जली कटी नहीं सुनाती तेरे को नींद नहीं आती क्या?
मीनाक्षी – आप तो नींद में से उठकर काम पर लग जाते हो। बीबी को कैसे अच्छा लगेगा कि उसका पति दिन रात मेहनत करे और ये बुढ्ढा घर में ऐश करे।
मनीष – सारी बाबा… मुंह खोलकर गल्ती हो गई….।
मीनाक्षी – वो नहीं सुनता तो आप ही कोई फैसला कर लो।
मनीष – कौनसा फैसला….?
मीनाक्षी – बाप से पिंड छुडाने का…..।
(म्यूझिक)
मनीष – मीनाक्षी…. ये तू क्या कह रही है….।
मीनाक्षी – आप तो ऐसे रिएक्ट कर रहे हो जैसे मैं बाप का खून करने को बोल रही हूं। मै तो इतना कहती हूं कि बस अब बहुत हो गया। किसी भी तरह उसे इस घर से निकालो।
(चिमनलाल का प्रवेश)
मनीष – आप आ गए पापा….।
चिमनलाल – सब्जी लाने में कौनसा टाइम लगता है। मैं तो सब्जी चुनता भी नहीं हूं। सब्जी वाले ने जो सब्जी दे दी, जिस भाव में दे दीं उठा लाता हूं। बिना मतलब उस गरीब से किच किच करके क्या मिलने वाला है।
मीनाक्षी – देखा मनीष – ये इंन्डाइरेक्टली मुझे टांट मार रहे हैं।
मनीष – पापा आप भी कम नहीं हो। अच्छा खाने के लिए मिल रहा है। अच्छा पहनने के लिए मिल रहा है। और क्या चाहिये आपको?
मीनाक्षी – वो तो मेरा अधिकार है। तूने शादी कर ली तो क्या मैं तेरे लिए पराया हो गया। हां ये अलग बात है कि तुम मुझे पराया समझकर घर से निकालने का प्लान बनाओ।
मनीषा – पापा।
चिमनलाल – हां बेटा मैंने तुम दोनों की सारी बातें सुन ली हैं। तुम दोनों यही चाहते हो ना कि मैं ये घर छोडकर चला जाऊं।
मनीष – पापा मैं ने ऐसा तो नहीं कहा है।
चिमनलाल – तूने नहीं कहा तेरी बीबी ने तो कहा है नां एक ही बात है….।
मनीष – लेकिन पापा….।
चिमनलाल – फिकर मत कर बेटा। मैं तेरी हालत समझ सकता हूं। तेरी बीबी के स्वभाव के बारे में तो हमें पहले से ही पता था। एकदम बगल में ही तो रहते थे इसके मां बाप। तेरी मां ने और मैंने तुझे समझाने की बहुत कोशिश की पर तेरे ऊपर तो इश्क का भूत सवार था ना।
मीनाक्षी – आप मेरे पति को मेरे खिलाफ भडका रहे हो पापाजी।
चिमनलाल – मैं क्यों किसीको भडकाने लगा। अब तू जैसी भी है मेरी बहू है।
मीनाक्षी – बस बस रहने दो ज्यादा मस्का मारने की जरूरत नहीं है….।
चिमनलाल – चिन्ता मत कर बहू अब मैंने फैसला कर लिया कि मैं इस घर में एक मिनट भी नहीं रहूंगा। तुम दोनों के हंसते खेलते परिवार को तबाह होते कैसे देख सकता हूं? आखिर मनीष का बाप हूं। भले ये घर तुम दोनों का है।
मनीष – क्यों पापा? आप इस परिवार का हिस्सा नहीं हो क्या?
चिमनलाल – था पर अभी नहीं। क्या किया था मैंने बता? तुझे गलत घर से रिश्ता जोडने के लिएमना ही किया था न। और तो कुछ नहीं कहा था। हर मां बाप ये चाहता है कि उसका इकलौता बेटा किसी अच्छे घर से रिश्ता जोडे।घर में बहू ऐसी आए जो पूरे घर को स्वर्ग बना दे।
तू जब कोर्ट में शादी करके आया तो मेरे से ज्यादा दुखी तेरी मां हुई थी। हमेशा कहती थी कि मनीष के भविष्य का क्या होगा। उसके आगे तो पूरा जीवन पडा है।पत्नी घर संवारने वाली नहीं मिली तो उसका तो पूरा जीवन बरबाद हो जाएगा।
मीनाक्षी – बस करो पापाजी।
चिमनलाल – बाबा, पापा, डैडी ये शब्द सुनने में कितने अच्छे लगते हैं। पर क्या किसीने सोचा भी है कि इन रिश्तों को निभाते वक्त कितना दर्द सहना पडता है। मनीष जब छोटा था तो उसे टाइफाइड हो गई, उन दिनो आज के जैसी अस्पतालें और दवाओं की सुविधाएं नहीं थी। तेरी सास और मैं रात रात भर जागकर इसके माथे पर पट्टियां रखते थे। घरेलू इलाज करते थे। तेरी सास को जहां कहीं से अच्छी सलाह मिलती बिचारी पसारियों के दुकान ढूंढकर जडी बूटियां लाती थी। जब ये बडी हुआ तो मैं इसकी उंगली पकडकर इसे स्कूल छोडने जाता था। पेट काटकर, कर्जा लेकर इसको पढाया लिखाया और इस लायक बनाया कि ये अपने पैरों पर खडा रह सके। बस इसी लालच में कि ये बडा होकर हमें सुख देगा। पर ये हमारा वहम था।(पत्नी के फोटो की ओर देखकर ) देख रही हो भाग्यवान, तेरे बाद मेरा क्या हाल हुआ है। तू कहती थी न बेटा होगा तो हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे। हमारा वंश आगे बढेगा। देख, तेरा परिवार कितना आगे बढ गया है। इतना आगे कि मैं उनकी बराबरी करने के लिए अब दौड भी नहीं सकता (रोता है)
मनीष – आइ ऐम सारी पापा..।
चिमनलाल – बस बेटा, ( पत्नी के फोटो को उतारकर एक बैग मे रखता है। साथ में कुछ कपडे और सामान भी पैक करता है) खुश रहो, आबाद रहो पर एक दूसरे से निभाकर चलो।
मनीष – पापा आप चले जाओगे तो मेरी क्या हालत होगी।
चिमनलाल – बेटा जिंदगी तो एक जुआ है और शादी उस जुआ का बडे से बडा दांव। अब ये तेरे ऊपर है कि तू उस दांव को कैसे जीतता है। मेरा क्या है। मैं तो वृद्वाआश्रम में जाकर जिंदगी के बचे खुचे दिन गुजार लूंगा। तेरे आगे तो लंबा रास्ता है। संभल के बेटा। हिम्मत नहीं हारना। भगवान भला करेगा। चलता हूं… .. चलता हूं………।
(सूटकेस उठाकर बाहर जाने के लिए आगे बढता है फिर पीछे मुडकर बहू से। )
एक बार डाली से मिल लेता तो।
मीनाक्षी – कोई जरूरत नहीं है।
मनीष – मीनाक्षी
चिमनलाल – रहने दे बेटा रहने दे।

( बाहर चला जाता है)
(सीन समाप्त)
सीन नं. 3
(वृद्वाआश्रम का सीन। चिमनलाल और मास्टर मनीराम आपस में बातें कर रहे हैं। चिमनलाल के जनम दिन की तैयारियंा चालू हंै।)
मास्टर – इतने साल कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला चिमनलाल।
चिमनलाल – हां, आज मेरे का यहां आए पूरे चार साल हो गए हैं।
मास्टर – हमारी दोस्ती के चार साल…..।
चिमनलाल – कितनी मुसीबतों का सामना किया। पता है मास्टर मैंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है।
मास्टर – हर किसीकेे हिस्से में कुछ न कुछ संघर्ष लिखा ही है चिमनलाल….।
चिमनलाल – सब किस्मत का खेल है मास्टर।
( लख्मीचंद, घनश्याम और शंकरलाल प्रवेश करते हैं।)
मास्टर – आओ यारो। अच्छे समय पर आए हो।
लख्मीचंद – अरे ये क्या। चुटकुले बताने वाला आज के दिन भी उदास भी उदास बैठा है।
मास्टर – उदास कहां है यार। ये क्या हंस तो रहा है।
(चिमनलाल अपने चेहरे पर मुस्कराहट लाता है)
घनश्याम – क्या यार ये भी कोई हंसना हुआ। ऐसे तो मैं भी हंस सकता हूं।
मास्टर – आज तेरा जनम दिन है चिमनलाल।
शंकरलाल – सीख ली जिसने अदा गम में भी मुस्कराने की,
उसे क्या मिटाएगी, ये गर्दिशें जमाने की।।
घनश्याम – चार्ली चैपलिन ने कहा था प् ींअम उंदल चतवइसमउ पद उल सपमिण् डल सपचे कवदश्ज ादवू जींजण् ज्ीमल ंसूंले ेउपसमण्
शंकरलाल – क्या बात है कोई शायरी कर रहा था – कोई फिलासफी झाड रहा है…..।
मनीराम – चिमनलाल ने जोक सुनाना बंद किया है न। इसीलिए हमने अपनी दुकानदारी चालू कर दी है।
(कुंदन प्रवेश करता है।)
कंुदन – (चिमनलाल को ) चिमनलाल दादा, ये लो दवाई ….. (एक गोली और पानी देता है) मुझे पता था….आप अपने आप दवाई नहीं लेंगे (मनीराम को) आपने अभी तक नहाया नहीं है मास्टर। मैं कहां जाऊं…..सब चीजों क ध्यान मुझे ही करना पडता है। चलो जल्दी…. जल्दी….तैयार हो जाओ ता केक काटें न …. देखा .. मोती ने अभी तक केक नहीं लाया है। मैं कहां जाऊं ….. क्या क्या याद रखना पडता है…..। कवि महाशय कम से कम आप तो नहा लीजिये।
मास्टर – पहले उसको तो नहाने दो जिसमा जनम है….।
कंुदन – (चिमनलाल को ) चलिए आप ही शुरूआत कीजिये……।
चिमनलाल – तू चल हम आते हैं।
कंुदन – जब तक आप लोग नहाओगे नहीं, नाश्ता नहीं करोगे तो मैं शाम की तैयारी कैसे करूंगा? बिना नहाए मुझसे नाश्ते की उम्मीद करना भी मत।
मास्टर – हां बाबा, पता है सब। अरे तूने लख्मीचंद को कुछ नहीं कहा। वो तेरा रिश्तेदार लगता है क्या?
शंकरलाल – (लख्मीचंद को) जा यार तू ही चला जा नहीं तो ये कुंदन हम सबका खून पी जाएगा।
कंुदन – अजीब जबर्दस्ती है। एक तो सेवा करो। ऊपर से इनके ताने सुनो।
घनश्याम – तू भी न कुंदन। बिना मतलब की घाई करता है….। सब लोग साथ में बैठे हैं। बातें कर रहे हैं। करेंगे ना सारे काम जल्दा क्या है।
कंुदन – मैं कहां जाऊं …. अजीब मुसीबत है मेरे लिए ….. नाश्ता ठंडा हो जाए तो मुझे मत बोलना…….मैं बार बार गरम करके नहीं दूंगा।
( कंुदन गुस्से में जाता है)
मास्टर – क्यों बेचारे की फिरकी लेते रहते हो। कितनी सेवा करता है हमारी। (लख्मीचंद को) जा यार तू नहाने जा।
लख्मीचंद – क्या जिंदगी है – आराम से नहा भी नहीं सकते……।
( लख्मीचंद जाता है)
घनश्याम – देख, चिमनलाल तेरे जनम दिन पर सबको डांट पडी…।
मास्टर – चिमनलाल, ये सब तेरे को हंसाने के लिए क्या क्या नहीं कर रहे हैं और एक तू है कि मुहं फुलाए बैठा है…..।
शंकरलाल – क्यों आया लेकर मैं,
ये गमों का फासला।
रह गया अधूरा जिससे,
प्यार का ये सिलसिला।।
घनश्याम – ( चिमनलाल को) क्या हुआ यार चिमनलाल… वैसे तो फूल के समान खिला रहता है. … हंसा हंसा कर सबके पेट मे दर्द कर देता है। फिर आजके दिन तेरे चेहरे पर बारह क्यों बजे हुए हैं।
शंकरलाल – लगता है चिमनलाल को घर की याद आ रही है।
घनश्याम – ऐसी बात है क्या चिमनलाल।
चिमनलाल – हां, एक वक्त समय था जब मैं अपना जनम दिन हर साल घर में मनाता था….। मेरी पत्नी सवेरे जल्दा उठकर पूरा घर साफ करती थी…. बाजार जाकर रंग बिरंगी फुग्गे लाकर एक एक फुग्गा फूंककर घर को सजाती थी घर में ही केक बनाती थी।तालियों का गडगडाहट के बीच ‘‘हैपी बर्थ डे टु यू’’ सुनकर दिल बाग बाग हो जाता था। बेटे ने शादी क्या की – मेरी बहू से मेरी खुशियंा सहन नहीं हुई। मेरा बेटा भी उसकी हां में हां मिलाकर खुश है।
मास्टर – खुश है न। फिर तुझे क्यों पेट में दर्द हो रहा है। चिमनलाल छोड ये सब।बच्चे बडे हो जाएं तो उनका छोड देना चाहिये। तू अपनी जिंदगी जी, उनको अपनी जिंदगी जीने दे।
(डाली प्रवेश करती है।)
डाली – दादाजी।
चिमनलाल – अरे डाली तू? मेरी रानी बिटिया। कितने दिनों के बाद मिल रही है।
(डाली दादाजी की गोद में आकर बैठती है।)
डाली – जाओ मैं आपसे बात नहीं करूंगी।
चिमनलाल – क्यों, क्यों?
डाली – आप मेरे को छोडकर क्यों आ गए। मुझे बताया भी नहीं कहां जा रहा हूं। मम्मी पापा ने भी
बहुत दिनों तक कुछ नहीं बताया कहते थे दोस्त के बेटे की शादी में गए हैं। बाजूवाली आंटी ने
एक दिन ये राज खोल दिया।फिर मैंने पापा मम्मी की ऐसी क्लास ली कि पूछो ही मत।
मास्टर – अब दादाजी की क्लास लो।
डाली – आप।
घनश्याम – बेटी हम सभ भी तेरे दादाजी हैं।
डाली – आप भी अपने बच्चों को छोडकर आए हो जैसे मेरे दादाजी आए हैं। (दादाजी से)
ये भी नहीं सोचा कि मुझे पढाएगा कौन। मेरे कंसेप्ट्स कौन क्लीअर करेगा। आप चले गए तो मैं क्लास में पहले नंबर से चैथे नंबर पर पहुंच गई।अब मैं कभी पहला नंबर नहीं आऊंगी क्या?
चिमनलाल – कैसे नहीं आएगी? हमारे पास मास्टर जो है वो तुझे पढाएगा।
डाली – मास्टर अंकल।
घनश्याम – मास्टर अंकल नहीं, मास्टर दादाजी।
(सब हंसते हैं।)
डाली – दादाजी आज आपका जन्म दिन है ना।
चिमनलाल – अरे वाह तुझे याद है।
डाली – आपके साथ बिताया हुआ हर पल,हर घडी याद है दादाजी।
मास्टर – चिमनलाल तू तो किस्मत वाला है यार। तेरी पोती तुझसे मिलने आई है।
चिमनलाल – पर तू यहां अकेली कैसे पहुंच गई?
डाली – दादाजी मैं अकेली नहीं आई हूं। मम्मी पापा को भी साथ लाई हूं। और अब आपको हमारे साथ चलना पडेगा।
चिमनलाल – किधर?
डाली – घर में और किधर
(मनीष और मीनाक्षी प्रवेश करते हैं।))
मनीष – पापा मुझे माफ करो, मुझसे बहुत बडी भूल हो गई। देखो मीनाक्षी भी आपसे माफी मांगने आई है।
मीनाक्षी – हा पापाजी (चिमनलाल के पांव छूते हुए ) आपके घर छोडने के बाद मैने महसूस किया कि बुजुर्गों का घर में कितना प्उचवतजंबम है।
मास्टर – (मनीष कोे) लेकिन तुम लोगों में ये बदलाव आया कैसे।
मनीष – हम लोग कश्मीर घूमने गए थे। जिस होटल मे हम रूके थे ना वहां हमारे पास वाले रूम में एक परिवार रहने आया। पति,पत्नी,बच्चे दादा, दादी सब लोग मिलकर हसते थे,घूमते थे। पोते पोती दादा, दादी का हाथ पकडेर कहानियां सुनते,ज्ञान की बातें करते चलते थे। बस ओर ट्रेन में भी वे अपने मां बाप के साथ न बैठकर दादा, दादी के साथ ही बैठते थे। एक संपूर्ण परिवार का एहसास दिलाया उन्होने सभी यात्रियों को।
मीनाक्षी – मैं देखती थी कि डाली ये सब देखकर बहुत मायूस हो जाती और रोज मुझसे पूछती दादाजी क्यों नहीं आते, कहां गए है। मेरे पास उसके मासूम सवालों का कोई जवाब नहीं था।
मास्टर – अब तो जवाब मिल गया ना। (डाली के सर पर हाथ रखकर) काश ये बच्चे डाली के समान ऐसे मासूम सवाल हर मां बाप से पूछें तो इन वृद्वाश्रमों की जरूरत ही नहीं पडेगी।
लख्मीचंद – चलो देर आयद दुरूस्त आयद।
(कंुदन प्रवेश करे थो)
कंुदन – क्या बात है आज आप लोगों की बातें खतम नहीं हो रही हैं क्या? दो बार पानी गरम किया पर कोई नहाने नहीं आया। पता है वाटर हीटर में बिजली ज्यादा लगती है। अब बिजली का बिल कौन भरेगा?
लख्मीचंद – मनीष, मीनाक्षी ये है कंुदन। हम सबका फ्रेंड, फिलासाफर और गाइड।इसकी बातों पर मत जाना। यूं ही हमको डांटते रहता है।
कंुदन – आप लोगों से तो पिछली बार मुलाकात हुई थी। अच्छा हुआ जो आप यहां आ गए। आपके पिताजी का जन्म दिन साथ में मनाते हैं।
शंकरलाल – हां, ये अच्छी आइडिया है। चिमनलालअ केे परिवार के साथ बर्थ डे मनाने का अलग ही मजा आएगा।
मीनाक्षी – पापाजी का जन्म दिन मनाएंगे पर यहां नहीं हमारे घर।
मनीष – हां आप सब लोग हमारे घर चलो।
चिमनलाल – ऐसा कैसे हो सकता है?
मीनाक्षी – पापाजी आप मुझे मेरी गल्तियों का पश्चाताप करने नहीं देंगे।
मास्टर – वाह सौ में से सौ माक्र्स….।
मनीष – पापा अब आप यहां वृद्वाआश्रम में नहीं रहागे।
लख्मीचंद – क्या सोच रहा है चिमनलाल?
कंुदन – ज्यादा मत सोचो चिमनलाल। पिछले दस वर्षों में पहिली बार देख रहा हूं कि बच्चे मां बाप को वृद्वाश्रम से वापस लेने आए है। एक बार ये मौका हाथ से गया तो फिर नहीं आने वाला।
शंकरलाल – कुंदन सही कह रहा है।
घनश्याम – आज हम सबको तेरे से जलन हो रही है चिमनलाल।
मास्टर – चिमनलाल ऐसे नहीं जाएगा। हम उसके घर चलेंगे। उसका जन्म दिन मनाएंगे और फिर उसे वहीं छोडकर आएंगे। क्यों मनीघ?
मीनाक्षी – हां ये सही रहेगा।
चिमनलाल – जैसे आप लोगों की मर्जी।
लख्मीचंद – इस बात पर एक चुटकुला हो जाए यार।
चिमनलाल – एक आदमी घर का दरवाजा निकालकर कंधे पर लेकर बाजार गया। रास्ते में उसका एक दोस्त मिला। उसने उससे पूछा क्या हुआ यार। घर के एंटरन्स का दरवाजा निकालकर आया है। उसने जवाब दिया ताला खुलवाना है, कबाडी मार्केट जा रहा हूं – चाबी गुम हो गई है। इसपर उसके दोस्त ने पूछा अबे घोचूंघर में चोर घुस गए तो। तब उसने जवाब दिया कैसे घुसेंगे? मेन एंटरन्स का दरवाजा मेरे पास है। (सब लोग हंसते हैं।)
(समाप्त)

किशोर लालवाणी

फ्लैट नंबर 13, गुरू नानक सोसाइटी, नारा रोड, जरीपटका, नागपुर