मुक्तक/दोहा

“मुक्तक”

शीर्षक — भाषा/बोली/वाणी/इत्यादि समानार्थक

तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में।

क्या रखा है इस झोली में जो नहीं तेरी ठिठोली में।

आज के दिन तूँ रोक ले आँसू नैन छुपा ले नैनों से-

दिल ही दिल की भाषा जाने क्या रखा है बोली में॥-1

हंस भी मोती खाएगा, फिर एक दिन ऐसा आयेगा।

कागा अपने रंग में आकर, काँव-काँव चिल्लाएगा।

कोयल की बोली झोली में, हमजोली होगा सजना-

पी-पी पपीहा रटन सुनेगा, बादल जल भर लाएगा॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ