“मुक्तक”
शीर्षक — भाषा/बोली/वाणी/इत्यादि समानार्थक
तुझे छोड़ न जाऊँ री सैयां न कर लफड़ा डोली में।
क्या रखा है इस झोली में जो नहीं तेरी ठिठोली में।
आज के दिन तूँ रोक ले आँसू नैन छुपा ले नैनों से-
दिल ही दिल की भाषा जाने क्या रखा है बोली में॥-1
हंस भी मोती खाएगा, फिर एक दिन ऐसा आयेगा।
कागा अपने रंग में आकर, काँव-काँव चिल्लाएगा।
कोयल की बोली झोली में, हमजोली होगा सजना-
पी-पी पपीहा रटन सुनेगा, बादल जल भर लाएगा॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी