कट गई जिंदगी एक पतंग सी
कट गई जिंदगी एक पतंग सी
गति हुई भंग की तरंग सी
स्याह हुई सब रिश्तों की गांठें
दुख सुख अब कौन किसके साथ बांटे
भीड़ भरी राहों में पसरा सन्नाटा
दूरियां हैं इतनी कि अब कोई नहीं भाता
कट गई जिंदगी एक पतंग सी…
कट्टी करते थे बचपन में
फिर मिल्ली भी होती थी
रिश्ते सब सोते थे सटकर
खाट कहां मिलती थी
करते थे सब कुछ मिल कर चाहे हो शैतानी
पीटे भी जाते थे मिलकर नहीं थी कोई बेईमानी
सब भाते थे, सब अपने थे. नहीं था कोई पराया
आज मगर हम कहां आ गए
सब कुछ हमसे छूटा
जीवन की गति ही बदली
सब कुछ हुआ अनूठा
कट गई जिंदगी एक पतंग सी…
— आनंद कृष्ण
सुन्दर भाव लिए पंक्तिया … कट गयी ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर कविता !