लघुकथा – पति कौन पत्नी कौन
दृश्य एक …
“सुन , संजय अब सिन्दूर मैं लगाऊंगा । तू बहुत दिनों से लगा रहा है ।”
“मंजय तू कैसी बात करता है तू ये तो मैं ही लगाऊंगा देख मैं कितना सुंदर लगता हूँ इसमें फेसबुक पर लाइक ,कॉमेंट देख।”
“नही कल से मैं भी लगाऊंगा तू नही लगाएगा और कल से तू पति बनेगा।”
“नही, नही, नही…” दोनो लड़ रहे है । पड़ोसी मज़े ले रहे है।
दृश्य दो …
कजरी ने शादी की मंजरी से दोनो बहुत खुश है ।
“मंजरी मैं तुम्हारी पत्नी बनती हुँ । तुम काम पर जाओ । मैं घर पर हूँ।”
“ठीक ठीक ।”
कुछ दिन बाद “कजरी अब तुम काम करोगी, मैं पत्नी बन घर को सम्भल लुंगी।”
“अरे !! मुझे तो बाहर का काम नही आता।”
“नही अब मेरी बारी है पत्नी बनने की जैसा कि हमने शादी के पहले ही फिक्स कर लिया था।”
“नही नही नही …”
“हाँ हाँ हाँ …” दोनो लड़ रही है । पड़ोसी मज़े ले रहे है।
— सारिका औदिच्य
हा हा हा हा… गज़ब का व्यंग्य !