कविता-सच का सामना!
दिल मे डर है,किसको, क्या बताये कौन ।
सोचते कयी लोग है,सामने आये कौन ।।
देखकर भी हम, अनजान बने रहते है ।
जानकर भी बोल, दबी जबान कहते है।।
गली-गली मे बुरे लोग,काला बाजारी है।
आसमान थक गया,लगता जमी हारी है।।
कहाँ से शुरू करे, बुराई को मिटाने की।
आदत जाती नही,खाने और खिलाने की।।
गले मे बिल्ली के,जंजीर को फसाये कौन।
परेशान जहाँ है पर,सामने पहले आये कौन।।
जगत मे ताप की सीमा, बहुत बढ रही हृदय*।
लाखों रावण है,लाये तो इतने राम लाये कौन।।
— हृदय जौनपुरी