गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

क़ाफ़िया— ई स्वर की बंदिश, रदीफ़- सादगी से

रुला कर हँसाते बड़ी सादगी से

गुलिस्तां खिलाते अजी सादगी से

हवा में निशाना लगाने के माहिर

पखेरू उड़ाते दबी सादगी से।।

परिंदों के घर में नहीं मादगी पर

हिला डाल देते मिली सादगी से।।

शिकारी कहूँ या अनारी कहूँ तुम

सजाते हो महफ़िल दिली सादगी से।।

लपक जा रहे थे उड़े थे फलक को

बिना चर घुमाते ख़री सादगी से।।

बुलाकर शिकायत का मुँह थाम लेते

अदावत निभाते खरी सादगी से।।

चलो मान लेते हैं गौतम गलत है

मगर तुम बताते उसी सादगी से।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ