तुम मोहब्बत हो मेरी
शहर के सभी न्यूज़ चैनल , अखबार में दर्शना का नाम है ।उसी की खबर आ रही है लगातार । मिल कर बधाई देने वालों की भीड़ है।
उसको “” इंटीरियर डिजाइनर और वास्तु शास्त्र “”में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली में सम्मान मिला है ।
वो अपने मिलने वालों से नम्रता , शान्ति से मिल रही है ।
उसको जरा भी अहंकार नही है कि वो बड़ी हस्ती है शहर की और उसको सम्मान मिला । यही एक गुण उसको महान बना है ।
कामयाबी दिलवा रहा है ।
सबसे मिल वो लंच बाद उसके कार्यालय गई । वहां भी उसके सहयोगी उसका इंतजार कर रहे है । सब ने उसको बधाई दी ।
उसका मुहँ मीठा करवाया । सब साथ वो ऐसी घुली हुई कौन बॉस है , कौन सहयोगी कोई भी नही बता सकता । खुशियों को सबके साथ जीने के बाद वो अपने कमरे में जा कर बैठी ही कि उसकी नज़र टेबल पर रखे कार्ड पर गई ।
नाम देख चौक गई ।आंखों में खुशी और गम के मिले जुले भाव आ गए । सुषमा आ कर बताई ” ये आपसे मिलना चाहते हैं , बोलते है जरूरी है मिलना आज ही । कल इनको जाना है दिल्ली वापस “।
“ह्म्म्म-………”
” कब कहा आने की ??
” जी एक घण्टे बाद “।
” ठीक , तुम जाओ । ये आ जाये तो कॉफी भिजवा देना और जब तक ये रहे यहां कोई भी मुझे परेशान नही कर पाए ” ।
सुषमा के जाते ही दर्शना ने दुबारा कार्ड देखा ” संजीव भट्ट सिविल इंजीनियर ” । आंखे नम हो गई । उसको पांच साल पुरानी बात याद आ गई ।
पांच साल पहले वो नटखट ,चुलबुली हँस मुख लड़की थी । उसने इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स किया और लग गई जॉब पर उसकी मेहनत और लगन से उसने दो साल में बहुत कुछ सीख लिया । जहां भी कोई कार्यक्रम होता तो वही जाती ।
उसको कम्पनी अपना प्रतिनिधि बना भेजती थी । बॉम्बे में डिजाइन का सेमिनार था उसमें वही गई ।
वहाँ पर उसकी मुलाकात सिविल इंजीनियर संजीव भट्ट से हो गई । दोनों की मुलाकात दोस्ती में बदली । दोनों बॉम्बे से अपने अपने शहर आ गए पर दोस्ती नही टूटी । दोनों बात करते तो लगता नही किसी अजनबी से कर रहे है । उनके विचार ,आदते ,पसंद, नापसंद बहुत मिलते हुए है । दोनों की दोस्ती को चार महीनें हो गए एक दूसरे को बहुत जान गए ।
एक दिन दर्शना ने संजीव भट्ट को उसके मन की बात बताई और शादी की बात उसके माता पिता को करने की कहा ।
तब संजीव भट्ट ने अपनी एक बात बताई जिसको वो कहना तो बहुत दिनों से रहा था पर कह नही सका ।
संजीव भट्ट ने दर्शना को बताया कि” वो एक लड़की को बहुत ज्यादा प्यार करता है । जिसके बिना वो नही रह सकता ।
वो लड़की उसकी जान है । उसके माता पिता अब हमारी शादी के लिए माने है “।
तुम दोस्त हो मेरी बहुत अच्छी वाली । ऐसी दोस्त को मैं खोना नहीं चाहता ।
” संजीव तुमने तो दोस्त मान चाहा पर मैंने तो तुमको दिल के मंदिर में बैठाया ।
” तुम्हारी जिंदगी में कोई थी तो मेरे करीब क्यों आये । तुमको प्यार तुम्हारा मिल जाएगा पर मेरा क्या कभी सोचा । तमको पहले से मालूम था न कि मैं प्यार करने लगी तुमसे ”
” हां , पर मैं आज भी तुमको एक दोस्त के रूप में चाहता हूँ । वो मेरी जिंदगी है जान बसती है उसमें मेरी “।
ठीक है ये आज हमारी आखिरी मुलाकात है । तुम खुश रहो अपने प्यार के साथ ,मैं अपने प्यार के साथ अकेली रह लूंगी।
संजीव भट्ट से दूर होने के बाद दर्शना ने खुद को एक महीने के लिए कमरे में बंद कर लिया ।
समझ आने पर उसने अपने सपने पर ध्यान देना शुरू किया ।
खुद की पहचान बनाना है उस पर पूरा जोर लगा दिया ।
खूब मेहनत करी ,उसने दिन रात ,खाना, पीना छोड़ दिया ।
खुद को इतना बदल दिया की जो उसको पहले से जानता वो हैरान होता ,।
हमेशा हँसने ,बोलने वाली अन्तःमुखी हो गई ।
काम पर ही ध्यान देती, और कहीं भी नहीं ।
सारा समय काम करने में और आज ये सम्मान मिला ।
तभी उसकी तन्द्रा को सुषमा भंग करती हैं ।
” मेम ,वो लोग आ गए ” ।
” ठीक …..
“भेजो ……..
“कॉफ़ी भी भिजवा देना ” ।
संजीव भट्ट को देख दर्शना थोड़ी भावुक होती है पर अगले पल खुद को संभाल लेती है। संजीव भट्ट के साथ उनकी पत्नी भी है जो उनके बारे मे सब जानती है।
दर्शना को देख संजीव भट्ट के मुहँ से निकल जाता है ” तुम बहुत बदल गई दर्शना क्या थी और क्या…”
” ह्म्म्म ,परिवर्तन संसार का नियम है। आप बताये क्या जरूरी काम था जो अर्जेंट मिलना था ” ।
” ये मेरी पत्नी जब से नया मकान लिया बीमार है । सब कर लिया फायदा नही हुआ । आज न्यूज़ में तुम्हारा मालूम हुआ तो सोचा मिल ले शायद कोई फायदा हो।”
” हम्म ,तुम अपने मकान का नक्शा मुझे भेजना । देख कर बताती हूँ । जो उपाय बताऊँ वो करना आराम मिल जाएगा ।
” दर्शना , एक बताओ शादी क्यो नही की तुमने ?”
” मुस्कुरा कर , मन्दिर में देवता एक बार स्थापित होते है बार बार नही ।”
दर्शना के बताए उपाय से संजीव भट्ट की पत्नी ठीक हो गई । उनकी दोस्ती को खास दोस्त का नाम मिला । संजीव भट्ट की पत्नी की भी वो दोस्त बन गई । सब हो गया पर वो पहले जैसी नही बन पाई । दर्शना उनके घर का हिस्सा बन गई ।
मन की भावना को मन में रखने से उसको दिल की बीमारी हो गई ।समय निकलता रहा एक दिन उसको ह्रदय घात हुआ वो बहुत बड़ा था जिसको वो सहन नही कर पाई लेकिन अंत समय मे वो संजीव भट्ट से अगला जन्म का साथ मांग दुनिया से विदा हो गई । कहते है प्यार एक बार होता है , किया नही जाता हो जाता है । सच्चा प्यार ताउम्र दिल में रहता है जिसको भूलना आसान नही होता “।
— सारिका औदिच्य
बहुत सुन्दर प्रेम कहानी !