हिन्दी दिवस पर
हिन्दी साहित्य जगत के आसमान में चमकते मेरे प्रिय साहित्यकार हैं … श्री वृंदावनलाल वर्मा जी सुप्रसिद्ध उपन्यासकार ।
क्यों हैं प्रिय
मात्र तेरह वर्ष की आयु में गर्मी की छुट्टियों में जो पहली पुस्तक मैने पढ़ी वह था वृंदावनलाल वर्मा जी द्वारा लिखित उपन्यास भुवन विकृम – एक महीने के करीब लग गया मुझे उस उपन्यास को पढ़ने में अयोध्या के राजकुमार भुवन विक्रम, गौरी एवं हिमानी और उनके इर्दगिर्द घूमती यह कहानी उस उपन्यास का एक- एक दृश्य मेरे मानस पटल पर मानो छ्प गया था।
उन्हीं का दूसरा उपन्यास मृगनयनी भी उन्हीं छुट्टियों में पढ़ लिया था और झाँसी की रानी भी ।
मात्र तेरह वर्ष की आयु और खूबसूरत उपन्यासों पढ़ने का अवसर यह सब उपन्यास हमारे घर की लायब्रेरी में थे ।
बाद में हम लोग ग्वालियर आ गये और कुछ दिन के लिये पुस्तकें छूट गईं लेकिन कुछ दिन बाद ही बाबूजी [मेरे पिताजी] स्थानीय लायब्रेरी के सदस्य बन गये और हमारा पुस्तक प्रेम पुनः जाग्रत हो गया मेरी मम्मी मात्र आठवी कक्षा तक पढ़ी थी उनका साहित्य प्रेम उत्कर्ष पर था वह अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद हिन्दी साहित्य के लिये समय निकाल लेती थीं । तो पढ़ाई के साथ- साथ साहित्य प्रेम भी चलता रहा।
इस बीच शरतचन्द्र, बंकिमचन्द्र, प्रेमचन्द्र, आशापूर्णा देवी, माणिक लाल मुंशीलाल, आचार्य चतुरसेन,गुरदेव रविन्द्रनाथ टैगोर, अमृता प्रीतम के साथ- साथ वृंदावनलाल जी की कुछ अन्य रचनायें पढ़ने का भी सुअवसर मिला जिनमें प्रमुख थीं_विराटा की पद्मिनी, गढ़ कुंडार, अचल मेरा कोई आदि । भुवन विकृम मैने लगभग पन्द्रह बार पढ़ा आज भी भुवन विक्रम ही मेरा सबसे प्रिय उपन्यास है। कई वर्षों बाद मुझे शिवानी जी को पढ़ने का अवसर मिला तो मैने उनकी लेखन शैली की में मुरीद हो गई उनका एक भी उपन्यास नहीं छोड़ा उनकी बात फिर कभी।
मेरे प्रिय साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा जी का जन्म सन् ९ जनवरी १८८९ में उत्तर -प्रदेश के मऊरानीपुर जिला झांसी में हुआ था मृत्यु २३ फरवरी १९६९ में । हिन्दी उपन्यास के विकास में उनका योगदान महत्वपूर्ण है । एतिहासिक उपन्यास लेखन को उन्होंने उत्कर्ष तक पहुँचाया । “अपनी कहानी ” नाम से उन्होनें स्वयं अपनी कहानी लिखी जो मैने पढ़ी नहीं है, पहला अवसर मिलते ही पढ़नी है। यूं तो उनकी रचनाओं की सूची लंबी है उन्होने नाटक एवं कहाँनियाँ भी लिखी।
प्रमुख कृतियाँ झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, मृगनयनी ,भुवन विक्रम के अतिरिक्त कचनार, अटल मेरा कोई, माधव जी, अमर बेल , प्रत्यागत ,संगम ,साहिब जू , कुंडली चक्र, सोना आदि थीं । कहाँनियाँ – अंगूठी का दान, शरणागत, तोषी, दाव आदि। नाटक-कनेर, पीले हाथ, नीलंकठ, धीरे -धीरे, राखी की लाज आदि। अभी प्रिय साहित्यकार की बहुत सी रचनाऐं पढ़ना शेष है।
— अनुपमा सोलंकी
बहुत सुंदर आलेख !
धन्यवाद राजकुमार जी