कमर तोड़ मँहगाई
पेट्रोल डीजल कितने हुए महँगे।
ये तो कमर तोड़ महंगाई है भाई।।
सब्जी मंडी में है महंगी सब्जियाँ।
थाली से दाल भी गायब है भाई।।
कतारों में लगी आम जनता देखो।
मँहगाई से त्रस्त गरीब यहाँ भाई।।
किराने के सामान में बढ़ी महँगाई।
जी एस टी का राग सुनाते भाई।।
सारे नेता झूंठे वादे कर कुर्सी पाते।
कुर्सी मिलते ही भूल जाते भाई।।
लोकतंत्र का मतलब यही है क्या।
वोट देकर मँहगाई सहते रहो भाई।।
भारत की जनता सब देख रही है।
मँहगाई में भी पेट पाल रही भाई।।
— कवि राजेश पुरोहित