” देखो गगन झुकता वहां ” !!
नई राहें करे है इंतज़ार !
देखो गगन झुकता वहां !!
हमने देखे , अनगिन सपने !
कितने टूटे , कितने अपने !
बुने हमने हैं सतरंगी तार !
चले हम तो हैं , खुशियों के द्वार !!
देखो गगन झुकता वहाँ !!
अनजानी है , राह नई सी !
बन बन बिगड़े , बात कहीं की !
थमी हाथों में है पतवार !
जगी आशा अँखियों के पार !!
देखो गगन झुकता वहां !!
कदम कदम पर , चाह जगी है !
यहां वक्त ने , करी ठगी है !
ठनी हमसे है बड़ी तकरार !
नहीं मानेंगे हम भी हार !!
देखो गगन झुकता वहाँ !!