अंधेरों ने की है साजिशें, मिल के हवाओं के साथ।
दिया हूँ जलता रहूँगा, दोस्तों की दुआओं के साथ।
हो के रहेगा बरबाद, अब दिल का अंजुमन,
बर्क की अदायें भी है, जुल्फों की घटाओं के साथ।
ये आजकल का नया सलीका है इन कातिलों का,
निगाहों में खंजर भी है मासूम अदाओं के साथ।
थोड़ा थोड़ा शरीफ हूँ मैं, थोड़ा आशिक मिजाज भी,
हो सके तो कर मुझे ,कुबूल मेरी खताओं के साथ।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”