कविता

दौड़ रही है जिन्दगी

दौड़ रही है जिन्दगी
रोटी की जद्दोजहद में।

कुछ निस्तेज चेहरे
बस सड़कों पर
दौड़ने का उद्देश्य लिये ।

तो कुछ चमकीले चेहरे
बन पतगें सैर करते है
खुले आसमान में
न कोई बन्धन
न चिन्ता रोटी की।

अक्सर सड़क पर दौड़ते देख
निस्तेज चेहरों को देख
पड़ जाती हूँ सोच में
क्यों दौड़ रहें है सब।

अक्सर करते
ओवरटेक हरेक से
जद्दोजहद रोटी की है
शायद
चेहरे बोलते है बिन कहे
सच कहते है सब
रोटी नाम ही सत्य है

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान