“कुंडलिया”
कटना अपने आप का, देख हँस रहा वृक्ष।
शीतल नीर समीर बिन, हाँफ रहा है रिक्ष।।
हाँफ रहा है रिक्ष, अभिक्ष रहा जो वन का।
मत काटो अब पेड़, जिलाते जी अपनों का।।
कह गौतम कविराय, शुभ नहिं नदी का पटना।
जल को जीवन जान, रोक अब वृक्ष का कटना।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी