पहले जैसी अब बात नहीं!!
अब पहले जैसी बरसात नही,
अब झीन्गूर वाली रात नही ,
कच्चे मकान सब पक्के बने,
अब भीगने वाली रात नही।
अब गाँव शहर सा लगते है,
सब थोड़ा स्वारथ मे जुड़ते है,
अब वो भाई चारा की बात नही,
अब सिहराने वाली रात नही।।
अब घाघ के बादल नही दीखते ,
अब कवि वो कविता नही लिखते,
अब ज्योतिष से कोई बात नही,
अब विग्यान के सिवा कोई बात नही।
अब अलगू के बैल नहीं चलते,
अब कच्चे कवेलू नही ढहते,
अब सारा गाँव शहर दिखता,
अब जंगल वाली बात नहीं ।।
अब पीपल तर कोई ठहर नही,
अब बरगद नीचे,दोपहर नही,
अब तपते दिन में तास नही,
अब पहले जैसी कोई बात नही ।
सुख सूकून या बैठ ठिठोली,
अपने गाँव की ठेठी बोली,
चाचा चाची की भैया भाभी की,
हंस-हंस कर गिरना,अब सौगात नही।
— हृदय जौनपुरी