कविता सफल वही जो गीतों में ढल जाए
कविता सफल वही जो गीतों में ढल जाए
कभी क्रान्ति तो कभी रीतों में बदल जाए
सुख का प्रणेता बने जग में हर कदम
वेदनाओं को महादेव सा निगल जाए
वीरों की गाथा कहे,बने अश्रु की धारा भी
रोम रोम पुलकित करता भाव-विह्वल जाए
बने माँ की ममता और बाप का धीर भी
दुखों में बन के प्रेमिका का आँचल जाए
टिके तो हिमालय ,बहे तो गंगा बन जाए
कभी पुरुषोत्तम राम,हो कभी सीता अविचल जाए
सलिल सरोज