कुंडलिया
“कुंडलिया”
कितना कर्म महान है, व्यर्थ न होती नाल
सरपट घोड़ा दौड़ता, पाँव रहे खुशहाल
पाँव रहे खुशहाल, सवारी सुख से दौड़े
मेहनती मजदूर, स्वस्थ रहता जस घोड़े
कह गौतम कविराय, कर्म फलता है इतना
जितना फलता आम, काम सारथी कितना॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी