विचार कभी मर नहीं सकते
आज तुम मुझे
नकार दोगे
अपनी आत्म-संतुष्टि की भूख में
गिरा दोगे
मुझे
मेरे शीर्ष से
जो मुझे प्राप्त हुआ है
मेरे अथक प्रयत्न से
और
तुम चोरी कर लोगे
मेरे सारे पुरूस्कार
जो मेरे हाथ की लकीरों ने नहीं
न ही मेरे माथे की तासीर ने दी है
बल्कि
जो मैंने हासिल किए हैं
अपनी कूबत से
अपने सामर्थ्य से
तुम्हारे अहंकार से लड़कर
और
सड़ी-गली तंत्रों से भिड़कर
पर
क्या करोगे
मेरे विचारों का
जो इन हवाओं में घुल गई हैं
पानी की तरह मिटटी में फ़ैल गई हैं
जो बिखर गई हैं
नभ में बादल बनकर
जो अंगार बनकर तप रहा है
अग्नि में
और जो अटल,अविचलित हैं
नई नस्ल की वाणी में
जो प्राण बनकर बैठ गया है
जीव-जन्तु हर प्राणी में
विश्वास करो
तुम थक जाओगे
विचारों को मारते मारते
विचारों की तह तक पहुँचते पहुँचते
विचारों की गंभीरता समझते समझते
और
विचारों की शक्ति मापते मापते
क्योंकि
तुम्हें पता ही नहीं है कि
विचार कभी मर नहीं सकते
हाँ
कुछ देर को दब सकते हैं
तुम्हारे बम,तोप और तानाशाही से
पर
ये फिर उठ खड़े होंगे
किसी दिन
जीसस की तरह
और
तुम्हें माफ़ कर देंगे
तुम्हारी बेबसी
और
लाचारी के किए
क्योंकि
तुम
कभी विचार से जुड़ नहीं पाए
अपनी कोई राय
विकसित नहीं कर पाए
तुम कर पाए
सिर्फ
चोरी
या
बनकर रहे परजीवी
सारी उम्र
जो दूसरों की विचारों पर
तब तक ही टिक सका
जब तक की
वो बाज़ार में बिक सका
सलिल सरोज