कविता – बेटी की अहमियत
धन की लालसा
मन में
जगाते हो,
बेटी को पराया धन
बोल गर्भ में गिराते हो।
कहते है ,के बेटा
वंश बढायेगा,
यदि बहू न आई
आंगन
तो किलकारी
कौन गूंजायेगा।
हे मानुष यह
जघन्य अपराध ही
मनुष्य की हार है,
बेटी बिन न
चल सकता
घर- परिवार है।
— शालू मिश्रा, नोहर (हनुमानगढ)