नवगीत – कहो कबीरा
कहो कबीरा ,
इस जीवन में,
सच पर ऐसा रोना कैसा ।
कहो कबीरा ………………..।।
किसकी चैखट, किसकी खिड़की ,
किसका यह घर डेरा है ।
मिटने वाला माटी ढ़ेला ,
न तेरा……न मेरा है ।।
आना-जाना ,
बात सनातन ,
नयन नीर भिगोना कैसा ।
कहो कबीरा ………………..।।
पैसा, पदवी, धन, दौलत सब,
मानवता से कहीं नीचे है ।
महल-कोठियां, सुविधाएं भी,
सज्जनता से सब पीछे है ।।
फिर तो साथी ,
नश्वरता पर ,
अपना रौब जमाना कैसा ।
कहो कबीरा ………………..।।
— मुकेश बोहरा अमन