नवगीत – जिन्दगी गुजर गई
जिंदगी गुजर गई
वक्त हाथ से गया ।
अपने गैर यूँ हुए ,
रक्त हाथ से गया ।।
भाव के अभाव में ,
हम टूटते गये ।
आब के अभाव में ,
बाग सूखते गये ।।
जिंदगी गुजर गई ….।।1।।
वक्त के तराजू आज
रिश्ते बोझ हो रहे ।
सरे-राह अब भरोसे ,
कत्ल रोज हो रहे ।।
वक्त को, तकदीर को ,
दोष दे रहे हम ।
सोचते नही घड़ी ,
कहाँ चूक रहे हम ।।
हम संभल ना सके ,
लोग लूटते रहे ।
आब के अभाव में ,
बाग सूखते रहे ।।
जिंदगी गुजर गई…।।2।।
गुल चमन के सभी ,
इश्क भरे थे कभी ।
आज वक्त का असर ,
हरे-हरे थे कभी ।।
पात-पात, फूल-फूल ,
खुशबूओं की घटा ।
नेह दिलों से यहाँ ,
ना खबर कब घटा ।।
जब बागवां ना रहे ,
चमन उजड़ते रहे ।
आब के अभाव में ,
बाग सूखते रहे ।।
जिंदगी गुजर गई ….।।3।।
आज रिश्तों की रवायत ,
अमन है मँझधार में ।
आदमी का दर्द अब तो ,
छप रहा अखबार में ।।
आईने न देख पाये ,
वक्त पर गुबार को ।
स्वार्थ में सब भूल बैठे ,
स्वजनों के प्यार को ।।
रिश्तों के रस छोड़कर ,
स्वार्थ डूबते गये ।
आब के अभाव में ,
बाग सूखते गये ।।
जिंदगी गुजर गई
वक्त हाथ से गया ।
अपने गैर यूँ हुए ,
रक्त हाथ से गया ।।
भाव के अभाव में ,
हम टूटते गये ।
आब के अभाव में ,
बाग सूखते गये ।।4।।
मुकेश बोहरा अमन
गीतकार
बाड़मेर राजस्थान
8104123345