ट्रैफिक (लघुकथा )
“अरे देखकर नही चलता !अन्धा है कया ?”
क्या कहाँ तूने?”अरे अन्धा होगा तेरा बाप !
“चल गाड़ी से निकल !अभी देखता हूँ तुझे सा..!
गाली किसे देता है!
सड़क के बीच में कार ,मोटर साईकिल वाहक के बीच झगड़ा देख ट्रफिक मे इर्द गिर्द तमाशबीनो की भीड़ इकट्ठा हो गयी ।बात इतनी बढ़ गयी ।तभी दोनों ने एक दुसरे को लात घुसे से मारना शुरु कर दिया !
एक बुज़ुर्ग उन दोनों को बीच से हटाने की कोशिश करने लगे ।
“कोई पुलिस को बुलाओ !
भीड़ देख मीडिया के लोग आ पहुँचे और लाइव रिपोर्टिंग करने लगे ।”हटिये ज़रा कैमरे के सामने से “लोगों को हटाते हुएँ बोले !लाईव रिपोर्टिग चल रही है !
बुज़ुर्ग ने बीच बचाव करने के उद्देश्य से समझाने की कोशिश की !”अरे लड़ाई से कुछ हासिल नहीं होगा ।केवल दोनों पक्षों का नुक़सान ही होता है ।चलो ख़त्म करो झगड़ा ।क्या जानते नही रोडरेज के कारण समाचारों में कितनो की जान चली गयी । पढ़ें लिखें समझदार हो ।”
एक दुसरे से हाथ मिलाओ ।”और तुम सब तमाशबीनो तुम्हारा कोई फ़र्ज़ नही झगड़ा बढ़ाने में आग में घी का काम कर रहे हो “हम सब को झगड़ा ख़त्म कराना चाहिएँ !”
“मीडिया वालों लाईव कवरेज दे रहे हो क्या साबित करना चाहते हो! कहाँ मर गयी तुम्हारी संवेदना क्या ख़बर बेचने तक ही सिमित है ”
अब तक दोनों सवार उनकी बातें सुन कुछ सम्भल कर !दोनो आपसी ताल मेल से बातें करने लगे ।
“सुबह ओफिस के समय जल्दी के कारण …।दुसरे ने कहाँ
तभी हा…।
ऐ हटो सब चलो सब अपनी मंज़िल ! इस बीच सिपाही ने आ कर सारी भीड़ को वहाँ से हटाया !
और झगड़ा ख़त्म होते देख !
बुज़ुर्ग की आँखें भर आयी ।
भररायी आवाज़ में उन के मुँह से बस यही निकला दो साल पहले यदि कोई झगड़ा ख़त्म करा देता तो मेरा पच्चीस साल का बेटा भी आज जीवित होता ।”
— बबीता कंसल.
Nice