कविता_नकली मुखौटा!!
छोड़ दो नकली मुस्काने ,नकली मुखौटा छोड़ दो |
आज तक जो कर लिए ,अब तो करना छोड़ दो ||
बज गई है खतरे की घंटी ,एक आहट हो रही |
हर शक्स परेशान सा है ,आत्मा सब रो रही ||
रास्तो में चल रही है ,सब जिंदगानी खौफ से |
मौत आने के पहले है ,मर रहे सब मौत से ||
संस्कारो से ही बनते हम, जानवर से आदमी |
धर्म -कर्म जो छोड़ देंगे ,कैसे बचेगा आदमी ||
काटने को तैयार क्यों है -सर्प सा ये आदमी |
तोड़ने को तैयार है अब -रिश्ते को रिश्ता आदमी ||
संस्कारो ,प्रेम की गंगा ,बहती थी जिस देश में |
कर रहा मानव खुद ही गन्दा ,बैठ साधू वेश में ||
छोड़ दो नकली मुस्काने ,नकली मुखौटा छोड़ दो |
आज तक जो कर लिया ,अब तो करना छोड़ दो ||
— हृदय जौनपुरी