हसीनों एक ताज़ा गज़ल लिख रहा हूं।
फूलो की वादियों को तेरा आंचल लिख रहा हूं।
पढ़ें न पढ़ें फैसला उनकी मर्जी पे ठहरा,
मै रोज एक ख़त मुसलसल लिख रहा हूं।
औरों के गरेबां में झांकने दो अहले जहां को,
मैं अपनी ही पशेमानी आजकल लिख रहा हूं।
संगेमरमर में तराशी वो शादाब गज़ल है,
लबों को जाम घटाओं को काजल लिख रहा हूं।
चुनाव का हो गया ऐलान गांव में शोर मचा है,
रोज हो रही चहल पहल लिख रहा हूं।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”