छवि
जब तुम्हारी छवि
मेरी स्मृति पटल पर आती है ,
तब मन तुम्हे ढ़ूँढ़ने के लिए व्याकुल हो जाता है ।
यह सिर्फ अहसास मात्र है
क्योकि छवि का स्मृति पटल पर आना
और मन का व्याकुल हो जाना
रोमांच तो पैदा करता है ।
पर जानती हूँ हकीकत इससे परे है
मेरे तुम्हारे बीच में निरन्तर बढ़ता
हुआ फासला ये दर्शाता है
कि इस जन्म में मिलना अब असम्भव है ,
पर सोचती हूँ कि क्या मिलना अब भी सम्भव है ।
इसलिए ,
तुम्हारी छवि ख्यालों में आकर
अक्सर परेशान करती है
हमको बहकाने की कोशिश में
मन को हैरान करती है
— डॉ .माधवी कुलश्रेष्ठ