उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग -3 )

ममता की परीक्षा ( भाग -3 )

” जी ! ” अमर ने पूरे आत्मविश्वास से जवाब दिया। दरवाजा खोलकर उसे अंदर आने का ईशारा करते हुए जमनादास जी ने अटैची उसकी तरफ बढ़ाया । अमर अभी भी बाहर ही खड़ा था । सेठ जमनादास ने एक तरह से अटैची बाहर खड़े अमर के हाथों में जबरदस्ती थमा दिया । सवालिया नजरों से जमनादास जी की तरफ देखते हुए अमर ने अनजाने ही वह अटैची थाम लिया और यही वो पल था जब कैमरे के फ्लैश चमके । जमनादास जी के हाथों से अटैची थामते हुए अमर की तस्वीर किसी कैमरे में कैद हो गई थी । लेकिन अमर जरा भी विचलित नहीं दिख रहा था ।
जमनादास जी सीधे मुद्दे पर आ गए । अटैची उसे थमाने के बाद उसे देखते हुए मुस्कुराए और बोले ,” इसमें पचास लाख रुपये हैं । मैं समझता हूँ यह तुम जैसों के लिए काफी है । पूरी जिंदगी गुजर जाएगी लेकिन यह दो कौड़ी की नौकरी करके इतने पैसे एक साथ नहीं देख पाओगे । ”
अमर कुछ कहने के लिए कसमसाया लेकिन इशारे से उसे खामोश करते हुए जमनादास जी बोले ,” मैं जानता हूँ तुम यही कहोगे न मेरा प्यार सच्चा है । पैसों के आगे मैं नहीं झुकनेवाला वगैरा वगैरा …! लेकिन दिल को निकालकर जेब में रख लो और ठंडे दिमाग से सोचो । हाथ आती लक्ष्मी को ठुकराना क्या समझदारी है ? नहीं न ! तो फिर एक बात और सोच लेना इनकार करने से पहले , कि जो इंसान पहली ही बार तुम्हारी शक्ल देखकर इतनी बड़ी रकम दे सकता है वह कुछ भी करा सकता है । पैसे में बड़ी ताकत होती है यह यूँ ही तो नहीं कहा जाता न ? इसमें से मामूली रकम निकालकर किसी गुंडे को दे दिया जाय तो तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा । ” कहने के बाद जमनादास जी ने अमर की तरफ देखा मानो उसके चेहरे पर अपनी धमकी का असर खोज रहे हों ।
और अमर तो जैसे चिकना घड़ा बन गया था । कोई भी असर उसके चेहरे पर नहीं दिख रहा था । भावशून्य चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कुराहट बिखेरते हुए उसने मुंह खोला ,” सेठ जी ! मैं आपकी तड़प को समझ सकता हूँ । एक बेटी जब बाप से बगावत करने पर आमादा हो तो बाप के दिल पर क्या बीतती है समझता हूं । मेरे पड़ोस के लाला हरखचन्द ने तो आत्महत्या कर ली थी जब उनकी लड़की उनके ही ड्राइवर अशोक से शादी करके उसके घर रहने चली गई थी । लेकिन आप निश्चिंत रहिये । मैं आपके ऊपर आत्महत्या करने की नौबत नहीं आने दूंगा । मैं आपकी लड़की से भागकर शादी नहीं करने वाला क्योंकि मैं रजनी से सच्चा प्यार करता हूँ । और प्यार सिर्फ पाने का ही नाम नहीं है , प्यार का मतलब त्याग और बलिदान भी होता है । मैं उसे हर हाल में खुश देखना चाहता हूं और मुझे अच्छी तरह पता है कि मैं उसे वह जिंदगी नहीं दे सकता जिस की वह अभ्यस्त है । मैं तो खुद ही सोच रहा था कि उसे कैसे समझाऊं ? मेरी मुश्किल आपने आसान कर दी । मुझे आपकी यह रकम नहीं चाहिए । मैं सचमुच उससे प्रेम करता हूँ सिर्फ तन से नहीं मन से उसे चाहता हूं । और इसीलिए नहीं चाहता कि उसकी शादी मुझसे हो । मेरे पास उसे क्या मिलेगा ? दो वक्त की रोटी तो शायद उसे मिल भी जाये लेकिन जिन सुख सुविधाओं की उसे आदत है मैं वह उसे कैसे दे पाऊँगा ? आप ये पैसे रख लीजिए सेठ जी ! आपका बहुत अहसान होगा मुझपर । ये पैसे लेकर मैं अपनी खुद्दारी का सौदा नहीं कर सकता । आज आपकी मदद से बहुत बड़ा बोझ मेरे सिर से उतर गया है सेठ जी ! बस एक काम कीजिये । मुझे सिर्फ दो दिन का वक्त दे दीजिये । अगले दो दिनों में ही मैं किसी दूसरे शहर में अपना ट्रांसफर करा लूंगा और फिर हमेशा हमेशा के लिए यह शहर छोड़कर अपनी रज्जो की जिंदगी से दूर चला जाऊँगा । बस दो दिन की बात है सेठ जी । आप उसको किसी बात की भनक नहीं लगने देना और फिर दो दिन बाद उसे बता देना कि अमर ने शादी के लिए साफ इंकार कर दिया है । उसका दिल टूट जाएगा , रोयेगी , गिड़गिड़ायेगी , मुझे बुरा भला भी कहेगी लेकिन आखिर में बेवफा समझ कर मुझे भूल जाएगी । वक्त सबसे बड़ा मरहम है । बड़े से बड़ा घाव भी भर देता है । उसे भी फिर से हंसते मुस्कुराते हुए जीना शुरू करने में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे । और फिर एक दिन आपकी वही हंसती खेलती रजनी आपको वापस मिल जाएगी । बड़ी धूमधाम से उसकी शादी करना । ” कहते हुए अमर की आंखें भर आईं थीं । आंखें तो सेठ जमनादास की भी भर आईं थीं लेकिन वह मजबूर थे । उनकी बेटी का भविष्य जो दांव पर लगा था । तभी सेठ जमनादास ने अपने ड्राइवर श्याम की तरफ देखा जो अपना मोबाइल जल्दी जल्दी अपनी जेब में रख रहा था ।
सेठ जमनादास से भी ज्यादा कुछ कहा नहीं गया । गला भर आया था । अमर को दो उंगलियां दिखाकर दो दिन में शहर छोड़कर चले जाने का ईशारा किया और ड्राइवर श्याम की तरफ देखा । श्याम शायद उनका ईशारा समझ चुका था । अगले ही पल गाड़ी आगे बढ़ी और शहर की अनगिनत गाड़ियों की भीड़ में कहीं खो सी गई । अमर वहीं खड़ा एकटक जाती हुई गाड़ी को देर तक देखता रहा । गाड़ी के नजरों से ओझल होते ही अमर के सब्र का बांध टूट पड़ा और वहीं करीब ही फुटपाथ पर बैठ गया । आंसुओं की धार उसके चेहरे को भिगोए जा रही थी । उसका मन कर रहा था कि वह दहाड़ें मारकर रोये । तभी उसके अवचेतन मन ने सरगोशी किया ‘ क्या हुआ अमर ? अब क्यों रोना आ रहा है ? अपने हाथों से अपनी दुनिया उजाड़ कर अब रो क्यों रहे हो ? अगर तुमने जरा भी समझदारी दिखाई होती तो आज रजनी तुम्हारी होती ! क्या हुआ जो उसका बाप इस शादी के खिलाफ था ? प्रेमियों ने कब ऐसी अड़चनों के सामने हार मानी है ? लेकिन तुमने तो मुकाबला ही नहीं किया ? डर गए हालात का सामना किये बिना ही । कायर जो ठहरे ? ‘
अर्धविक्षिप्तों सी हालत हो गई थी अमर की । सिर के बाल नोंचते हुए पागलों के अंदाज में बड़बड़ा उठा ” हाँ ! हाँ ! मैं पागल ही हूँ ! ” फिर खुद को संभालते हुए वह खुद ही अवचेतन मन द्वारा उठाये गए सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करने लगा । उसका दिल तो कह रहा था वह जोर से चीखे और अपने अवचेतन मन को जवाब दे कि ‘ हाँ ! अपने हाथों से अपनी दुनिया उजाड़ने का दोषी हूँ मैं । लेकिन यह सिर्फ तुम्हारी सोच है । तुम क्या जानो प्यार क्या होता है ? प्यार सिर्फ पाने का ही नाम है ? नहीं ! प्यार त्याग और तपस्या का नाम है । प्यार में कुछ खोने का मजा तुम क्या जानो ? आज सब कुछ खोकर भी मैं खुश हूँ । मुझे खुशी है कि अब मेरा प्यार मेरे साथ रहकर रोज रोज मेरी तरह गरीबी और मुफलिसी की मौत नहीं मरेगी बल्कि वह जहां भी रहेगी खुश रहेगी । वह जिस जीवन की अभ्यस्त है उसे वही जीवन मैं तो दे नहीं सकता फिर उसकी खुशियों को ग्रहण लगाने वाला मैं कौन हूँ ? ‘
तभी उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसका अवचेतन मन अठ्ठाहस कर रहा हो ‘ अपनी कायरता को त्याग का नाम मत दो अमर ! तुम्हें क्या लगता है ? तुम तो शायद रजनी के बिना जी भी लो लेकिन क्या रजनी तुम्हारे बिना जी सकेगी ? और फिर क्या रजनी ने तुमसे कभी शिकायत की थी या कोई तंज कसा था तुम्हारी गरीबी को लेकर ? फिर तुमने यह कैसे फैसला कर लिया कि उसे तुमसे नहीं तुम्हारी सुख सुविधाओं से प्यार था ? प्यार वो अनमोल तोहफा है जिसके सहारे इंसान जमाने की सभी मुसीबतों से मुकाबला कर लेता है । और फिर तुमने वो गीत तो सुना ही होगा ‘ सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं ..प्यार के दो चार पल ……! लेकिन तुम्हें तो उससे शायद प्यार ही नहीं था कभी ! तुम्हें तो यह भी ध्यान नहीं होगा कि वह तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली है । ‘
यह विचार आते ही अमर वहीं बैठकर घुटनों में मुंह छिपाकर अपनी बेबसी पर रो पड़ा !

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

2 thoughts on “ममता की परीक्षा ( भाग -3 )

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • राजकुमार कांदु

      बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय उत्साहवर्धन के लिए !

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