कविता
घोड़े दौड़ते थे
बड़ी तेज़ी से दिल के।
न अस्तबल का पत्ता था
और न रस्तों का।
उसकी आँखों के
झरने
सुर्ख़ होठों की
गर्माहट
प्यास और थकान
को भगा देती थी।
हर पल
गुफ़्तगू करनी होती थी
उससे
दो पल साथ में
बाकी यादों और तन्हाइयों में।
सर्द रातों में
ढ़क लेती थी
एहसासों की तपती हुई
रज़ाई ।
जब से मौसमो की
फितरत बदली है।
न वो रंगीनियत है फिजाओं में
और न ही वो
अल्हड़ उमड़ते
प्रेम के बादल।।
— पवन अनाम