ग़ज़ल
साँस लेना अज़ाब लगता है
वक़्त मेरा खराब लगता है….
सोचता हूँ लुटा दूँ दिल उस पर
वो हसीं बेहिसाब लगता है
वो परेशान कर रहा सबको
पी के आया शराब लगता है….
शहर की भीड़ से दुखी है दिल
गांव में दिल जनाब लगता है…
चाँद तेरे हसीन चेहरे पर
बादलों का नकाब लगता है….
उसका अहसास है अलग सबसे
खार जिसको गुलाब लगता है
आप ‘केवल’ की बात पर चुप हैं
आपका ये जवाब लगता है
— आनंद पाण्डेय “केवल”