कविता

चिट्ठी

गांव,गांव की हर गलियन में,
जब भी  डाकिया आता,
खाखी वर्दी,हाथ में झोला टागे,
साइकल की घण्टी बजाता,
अपनी,अपनी चिट्ठी ले लो सब,
काका,बन्धु,बेटी और भ्राता,
गांव में अपने देख डाकिये को,
सबका मन हर्षित हो  जाता,
प्रिय की कुशल क्षेम पाने को,
मृदु, मन सबका  अकुलाता,
खत खोल जब पढ़ें कुशलता
मन  अन्तःकरन मुश्काता,

न जाने अब कहाँ खो  गया,
वो   डाकिये  का   इंतजार,
वो   चिट्ठी  पाती  का  दौर।
आधुनिकता  फैली जहां  में,
जबसे मोबाइल का आया दौर..!!

✍  सरला तिवारी

सरला तिवारी

मूल स्थान रीवा (म.प्र.) निवासी- जिला अनूपपुर (म.प्र.) शिक्षा - स्नातक गृहिणी अध्ययन और लेखन में रूचि है. ईमेल पता [email protected]