कविता

जय माँ नर्मदे

मैखल पर्वत पर अवतरित हुईं

शिव की तनया माँ नर्मदा।

अलौकिक सौंदर्य मुख पर छाई

नित लीलाएं दिखाती सर्वदा।

शिव अपने श्रमजल प्रस्वेद से,

अवतरित किया महारूपवती।

सभी देव गण ,मन हर्षित हुए।

और प्रसन्न हुए शिव,पार्वती।।

नामकरण हुआ देवों के मुख से,

रखा नाम इनका नर्मदा।

वसुंधरा को  पावन करने को,

रूप में  आईं जलमला।।

शिव के आदेश को पाकर के,

पृथ्वी तल अवतरित हुईं।

मगरमच्छ आसन सुशोभित,

उदयाचल पर्वत पर उतरीं।।

आने से इनके पावन हुआ,

रेवाखण्ड का सारा भू,भाग।

धन्य भाग्य हुआ जीवन सबका,

मानव,पशु-पक्षी और काग।।

पाप दूर हो इनके दर्शन से,

और पुण्य मिले जलपान कर।

पावनी गंगा भी पावन होतीं फिर,

माँ नर्मदा जल का स्नान कर।।

अमरकंटक शिखर से उद्गमित हो,

पश्चिम दिशा को बह  चलीं।

पहुंचकर  फिर अरब   सागर,

खंभात की  खाड़ी में  गिरीं।।

पड़े गांव, गांव चाहे सघन वन,

हर गली पुण्य बांटती माँ नर्मदा।

पथदर्षिके  शुभदायिनी माँ सब,

भक्तों का पार लगाती सर्वदा।।

प्रकाट्य रूप अपना दिखलाई,

जब पहुंची जबलपुर के तट बाट।

जो प्रसिद्ध तीर्थस्थान नाम से इनके,

है नाम जगह का भेड़ाघाट।।

नाग यक्ष,सिद्ध गन्धर्व किन्नर,

करते सब  इनकी  परिक्रमा।

विंध्य की माँ  है स्वामिनी,

इस भू,भाग की  अन्नपूर्णा।।

सब भक्त जन मन से करें,

माँ नर्मदा तुम्हारी  आरती।

हे, कल्याणदायिनी माँ नर्मदे,

सबका जीवन पर उतारती।।

दूषित करो न इस पवित्र जल को,

न करो सब अपनी मनमानी।

अपना अहित फिर स्वतः कर रहे,

न करो फिर  ऐसी नादानी।।

सरला तिवारी

सरला तिवारी

मूल स्थान रीवा (म.प्र.) निवासी- जिला अनूपपुर (म.प्र.) शिक्षा - स्नातक गृहिणी अध्ययन और लेखन में रूचि है. ईमेल पता [email protected]