मुक्तक/दोहा

“दोहा”

“दोहावली”

हँसते मिलते खेलते, दिल हो जाता खास।
प्रेम गली का अटल सच, आपस का विश्वास।।-1

राधा को कान्हा मिले, मधुवन खुश्बू वास।
थी मीरा की चाहना, मोहन रहते पास।।-2

गोकुल की गैया भली, थी कान्हा के पास।
ग्वाल-बाल की क्या कहें, हुए कृष्ण के दास।।-3

यशुदा के दरबार में, दूध दही अरु छास।
मोहन मिश्री ले उड़े, माखन मुख लपटास।।-4

गोपी ले गागर चली, पनघट खेलत रास।
निर्मल धुन मुरली बजी, जल यमुना अति पास।।-5

गोवर्द्धन उँगली चढ़ा, इंद्र हुए निराश।
नाग कालिया भग गया, पूरण प्रभु विश्वास।।-6

मथुरा से गोकुल गए, नगरी है अति खास
कृष्ण द्वारिका धाम प्रभु, अपनो पर विश्वास।।-7

राजा अपने राज का, होता है अति खास।
फिर भी देखो हो रहा, बिना बात परिहास।।-8

कैसी -कैसी नीति है, कैसी-कैसी आस।
खींच रहे है मिल सभी, कुर्सी कितनी खास।।-9

वीर सिपाही दे रहा, पहरा सीमा पास।
हम लालच में खेलते, बावन पत्ता तास।।-10

अब तो तनिक विराम दें, मुँह की बोली खास।
खुद अपने को तौलकर, करें खूब परिहास।।-11

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ