कविता

“मुक्त काव्य”

“मुक्त काव्य”

सजाती रही
सँवारती रही
गुजारती रही जिंदगी
बाढ़ के सफ़र में
बिहान बहे पल-पल।।

गाती गुनगुनाती रही
सपने सजाती रही
चलाती नाव जिंदगी
ठहर छाँव बाढ़ में
गुजरान हुआ गल-गल।।

रोज-रोज भीग रही
जिंदगी को सींच रही
लहरों से खेल-खेल
बिखर गया घाट डूब
अश्रुधार छल-छल।।

तिनका-तिनका फेंक रही
डूबते को देख रही
मसरूफ थी जिंदगी
जल के प्रकोप में
खोया गान कल-कल।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ