“सोमराजी छंद मुक्तक”
छंद- वाचिक सोमराजी (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी- लगागा लगागा, 122 122
“सोमराजी छंद” मुक्तक
या राम माया।
मृगा हेम भाया।
छलावा दिखावा-
सदा कष्ट पाया॥-1
तजो काम धामा।
भजो राम नामा।
सदा कृष्ण माधो-
पुकारें सुदामा॥-2
मिले द्वारिका में।
सुखी पादुका में।
चुराते चना को–
सुदामा सखा में॥-3
लुटाता नहीं मैं।
सुनाता नहीं मैं।
सदा बांसुरी को-
बजाता नहीं मैं॥-4
रहो साथ मेरे।
सुदामा दिलेरे।
तुम्ही तो सदा से-
हरे चैन मेरे॥-5
न आते यहाँ तो
दुखाते वहाँ तो
सदा ही लजाते
निभाते कहाँ तो॥-6
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी