प्रदेश सरकार ने हिंदू समाज को दिया बड़ा उपहार, विपक्ष का विरोध
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आखिरकार हिंदू भावनाओं व आस्था का आदर करते हुए संत समाज की एक बहुत बड़ी मांग इलाहाबाद का नाम ‘प्रयागराज’ करके पूरी कर दी है। अगर यह मांग अभी पूरी न हुई होती तो पता नहीं अब कब अवसर प्राप्त होता। इलाहाबाद में कुंभ मार्गदर्शक मंडल की बैठक के बाद यह घोषणा की गयी और प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक ने अपनी सहमति भी दे दी है। अब सरकार जल्द ही सारी औपचारिकतायें पूरी करने जा रही है। बैठक में मुख्यमंत्री ने बताया कि इस बार कुंभ मेले में तीर्थयात्री संगम तट के किले में स्थित अक्षय वट और सरस्वती कूप का दर्शन भी कर सकेंगे। वैसे भी इस बार कुंभ की अदभुत तैयारियां की जा रही है।
इलाहाबाद शहर का नाम प्रयागराज करना कई मायनों में ऐतिहासिक निर्णय है। 444 वर्षों के बाद इलाहाबाद प्रयागराज के नाम से जाना जा रहा है लेकिन सरकार के हर बार के निर्णयों की तरह मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले तथाकथित सेकुलर दलों को सरकार का यह कदम कतई रास नहीं आ रहा है। सरकार के फैसले से संत समाज व हिंदू समाज उत्साहित व प्रफुल्लित है। सरकार के फैसले से मुगलिया सल्तनत की एक और निशानी का किला ढह गया है। हालांकि अभी इस विषय पर काफी काम होना अभी शेष है। अभी शहर के रेलवे स्टेशन व बस अड्डों का नाम बदला जायेगा। शहर के अंदर कई ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व की इमारतों में इलाहाबाद लिखा हुआ है जिसे भी बदलना पड़ेगा तब जाकर वास्तविक बदलाव दिखायी पड़ेगा। फिलहाल अब सरकार के फैसले से उम्मीदें परवान चढ़ी है कि बदलाव होकर रहेगा और मुगलों व अंग्रेजों ने जिस प्रकार से हिंदू समाज की भावनाओं व आस्था के केंद्रों को ध्वस्त किया था और आजादी के बाद देश के सत्तासीन सेकुलर दलों ने भी हिंदू समाज की भावनाओं को लगातर ठेस पहुंचायी अब उन सभी का हिसाब लेने का यही समय चल रहा है। यही कारण है कि आज सेकुलर दलों के पेट में एक बार फिर दर्द उठ रहा है। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने की मांग काफी समय से चली आ रही थी लेकिन देश के सभी तथाकथित सेकुलर दल लाखों अभिव्यक्ति की इस मांग को अपने पैरों तले रौंद रहे थे। आज यह मांग पूरी हो गयी है और हिंदू समाज खुशी के दो पल बिता रहा है। अब हिंदू समाज को आशा बंधी है कि आने वाले दिनों में मुगलिया सल्तनत और अंग्रेजां के जमाने के और निशानों को ध्वस्त कर दिया जायेगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. योगेश्वर तिवाारी का कहना है कि अकबर 1573 ईसवी के आसपास यहां आया था और उसने संगम तट पर किले का निर्माण कराया और इसी दौरान प्रयागराज का नाम अल्लाहाबाद रख दिया और उसके बाद अंग्रेजों के जमाने में यह संशोधित होकर इलाहाबाद हो गया। तब से यह नाम चला आ रहा है।
पुराणों का मत है कि प्रयागराज को प्रयाग इसलिये कहा गया है कि वह सर्वोत्तम और उत्कृष्ट तीर्थ है। यज्ञ, हवन, दान-पुण्य के सर्वथा उपयुक्त समझकर स्वयं भगवान विष्णु और शंकर जी ने प्रयाग नाम दिया है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि माघ मास में तीन करोड़ दस हजार तीर्थ प्रयाग में एकत्र होते हैं। प्रयाग शब्द की उत्पत्ति यज धातु से है जिसमें प्र उपसर्ग प्रकृष्ट श्रेष्ठ तथा याग शब्दवाची है। ब्रह्मपुराण और मत्स्यपुराण में प्रयाग का वृहद वर्णन है। प्रयाग शब्द का तात्पर्य है जहां बड़ी संख्या में यज्ञ होते हैं।
कुंभ को ऐतिहासिक व पौराणिक स्वरूप प्रदान करने के साथ-साथ स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना एक बड़ी चुनौती है। गंगा नदी में पानी की अविरलता का संकट है। सरकार को नाम में परिवर्तन करने के साथ अभी भी कई स्तरों पर लगातार काम करना है। सरकारी तंत्र काम कर भी रहा है। अफसरशाही और घोटालेबाज यहां पर भी अपना काम करना चाह रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री की तीखी नजरों से वह बच नहीं पा रहे हैं। पिछली सरकारों में तो कुंभ मेले में आने वाले तीर्थयात्रियों पर रेलवे ने जजिया कर के समान सरचार्ज लगा दिया था जिसे इस बार नहीं लगाया जा रहा है। हिंदू संतों को इस बात का आभार मानना चाहिये कि इस बार का कंुभ बेहद अदभुत व भव्य होने जा रहा है। यही कारण है कि प्रदेश के विरोधी दलों को एक बार फिर हिंदू जनमानस की भावनाओं पर कुठाराघात करने का अवसर मिल गया है, लेकिन अब विपक्ष अपने घृणित इरादों पर सफल ही हो पायेगा।
कांग्रेस व सभी विरोधी दलों को अपनी घोर हिंदू विरोधी छवि पर व्यापक स्तर पर गहराई के साथ आत्म चिंतन व मनन करना चाहिये तब उन्हें अपनी भूल का एहसास होगा। अगर यह दल नहीं सुधरते हैं, तो एक बार फिर हिंदू जनमानस अच्छी तरह से सुधार देगा पूरी तरह से समाप्त करके।
— मृत्युंजय दीक्षित