धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

राम राज्य – एक कल्पना

गोस्वामी तुलसीदास – विरचित रामचरित मानस के साँतवे उत्तर काण्ड में राम- राज्य में जनता की सुख समृद्धि , धन- वौभव आदि का विस्तार से वर्णन करते हुए लोंगों -के आपसी आचरण –व्यवहार की पवित्रता , प्रेम और भाई –चारे तथा सभी वर्णों – जातियों के लोग अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए ,सौंपे गए कर्तव्यों का ईमानदारी ,लगन और परिश्रम से उचित निर्वाह किया करते थे| कहीं चोरी – डकैती , लूटमार , ठगी धोखा -धडी‌ नहीं हुआ करती थी | लोग घरों पर ताले नहीं लगाते थे | सभी निर्भय- निडर सारे काम-धाम  करते हुए निवास किया करते थे |

तुलसीदास का कहना था कि बादल उतने ही बरसते थे जितनी आवश्यकता होती थी | वृक्ष आदि माँगने पर ही इच्छित फल – फूल प्रदान किया करते थे, चाँद – सूरज उतनी ही ठंडक और ताप दिया करते थे जितनी लोगों को आवश्यकता होती , न कम न अधिक| इसी प्रकार नदियाँ भी बाढ़ लाकर आबादियाँ , फ़सलें बहाया नहीं करती थी , सूखा भी नहीं पड़ा करता था| मतलब की सारी क्रिया- कलाप ,व्यापार मानव –जीवन की इच्छा आवश्कता का ध्यान रखकर ही चला करते थे |राजा- प्रजा के सम्बंध बड़े अच्छे और सुखद थे| राज्य कर्मचारी प्रजा की लूट करने वाले भ्रष्टाचारी और रिश्वतखोर न होकर अपने –आपको जन- सेवक समझा करते थे |

हमारे राष्ट्र्पिता महात्मा गाँधी जी ने अपने राम – राज्य की मानसिकता को लेकर कुछ इसी प्रकार के विचार और कल्पनाएँ  प्रस्तुत किए थे  | उनकाअभिप्राय ऐसे भारत का निर्माण करना था  कि जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की आम आवश्यक सुविधायें प्राप्त हो, ऊँच –नीच या धनी – निर्धन में बहुत अधिक अंतर न हो और लोग –आपस में मिल –जुलकर रह सकें| एक- दूसरे पर विश्वास कर सकें| ऐसा तभी सम्भव हो सकता है कि जब नेतृवर्गऔर शासन व्यवस्था भ्रष्ट न होकर अपना आचरण –व्यवहार शुद्ध रखने वाली हो, सभी को रोजगार मिले ,किसी को किसी का मोहताज़ होकर न रहना पड़े | इसी दृष्टि से उन्होंनें अमीरी-धनियों को धन का स्वामी नही ब्लकि ट्र्स्ट्री या संरक्षक कहा था | आवश्यकता पड़ने या दूसरों की सहायता करने  वाला होना चाहिए| मुनाफे की इच्छा से शोषण –उत्पीड़न करने वाला नहीं|

बादल उतना ही बरसे जितनी आवश्यकता हो और चाँद – सूरज आदि उतनी  ही ठण्डक – ताप दे जितना जरूरी हो  ऐसी व्यवस्था तो किसी कल्पित स्वर्ग लोक में या फिर जहाँ पर स्वयं  भगवान राज्य कर रहे हो ,शायद वहीं-कहीं सम्भव हो सकती हैं पर रोटी , कपड़ा,मकान, पीने का साफ पानी और साफ सुथरा मौहौल बनाकर  रख पाना तो चाहने पर निश्चय ही आदमी के बस की बात है | हमेशा भरी- सूखी रहनेवाली या बरसात में बाढ़ ला देनेवाली नदियों को ..सूखी रहने वाली नदियों से जोड़ कर नहरेंआदि निकालकर निश्चय  ही बाढ़- सूखे की स्थितियों को रोक पाना भी आदमी के बस की बात हैं| इसी प्रकार स्वस्थ- स्वच्छ प्रशासन दे पाना  भी आदमी के वश की बात है | चाहने पर  आदमी अवश्य कर सकता है|

हम सब के लिए आवश्यक है कि निःस्वार्थ कुशल राजनेतृत्व  और प्रशासन की , आचरण – व्यवहार की पवित्रता की, हर- स्तर पर शासन- प्रशासन को स्वस्थ ,कुशल और सब और प्रकार से प्रदुषण मुक्त बनाने की संकल्प शक्ति की|

हमारा पूरा विश्वास है यदि हमारा नेतृवर्ग निस्वार्थ एवं भ्रष्ट मानसिकता से रहित हो कर दण्ड और पुरस्कार की कुशल  कठोर व्यवस्था करने योग्य हो जाए तो तुलसीदास वाले राम- राज्य चाहे न आ पाए पर महात्मा गाँधी और मेरी कल्पना के राम- राज्य को आने से कोई रोक नहीं सकता, इस में तनिक भी संदेह नही है|

 रमेश कौर

रमेश कौर

पिता का नाम: सरदार किरपाल सिंह दत्ता पति का नाम: रविंद्र सिंह जन्म तिथि : 18/07/74. जन्म स्थान : श्रीनगर , कश्मीर पता: हाउस न: 378 , गुपकाररोड , वुड लैण्ड विद्धालय के पास सोनवार,श्रीनगर, कश्मीर, 190001 कार्यक्षेत्र :  अध्यापिका (पंजाबी और हिंदी)  ( बर्न हाँल  हायर सेकेण्डरी स्कूल) रूचि:  साहित्य में पठन और पाठन