“कुंडलिया”
“कुंडलिया”
तितली रानी मत उड़ो, बिन मेरे आकाश।
मैँ भी उड़ना चाहता, बँधकर तेरे पाश।।
बँधकर तेरे पाश, संग उड़ा प्रिया मुझको।
तेरे सुंदर अंग, रगां कुदरत ने तुझको।।
कह गौतम कविराय, चमकती हो जस पितली।
उड़ती हो इतराय, लुभा लेती मन तितली।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी