चांद सितारे फूलों की लड़ियां अच्छा सोचना।
किस किसके घर में आज बुझा है दीया सोचना।
कितने महफूज़ हैं उसकी शहादत के बूते,
दाने दाने को मोहताज है उसकी बेवा सोचना।
खुले आम घूम रहा है अस्मत का लुटेरा,
बेबस है इंसान के निगेहबान जरा सोचना।
सांझ ढले हम तो लौट चले हैं अपने घरों को,
क्यूं काटे शज़र किसने तोड़ा घरौंदा सोचना।
हमने पैसा बहुत कमाया मगर क्या फायदा,
होना है मयस्सर टुकड़ा दो गज का सोचना।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “