गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

प्यार में क्यों चोट खायी उन दिनों
दर्दे दिल यूँ क्यों लगाई उन दिनों

जब लगाना था पढ़ाई में वकत
आँख मैंने क्यों लड़ाई उन दिनों

इम्तहान-ए-जिंदगी बड़ी ही कठिन
ना किसी ने ये बताई उन दिनों

आग सुलगी थी कहिं, कहिं पे धुँआ
ये चिनगारी कैसे भड़की उन दिनों

प्यार एकतरफा हुआ या दोतरफा
लब सिले फिर कौन जाने उन दिनों

आँख ही का ही सहारा था फकत
हिम्मते जुस्तजू नही था उन दिनों

उनको चाहा करते थे हम इस कदर
आँख भर आती थी उनकी उन दिनों

वक्त ने ऐसा किया हमपे सितम
छोड़ दामन चल दिये वो उन दिनों

हमने ये राज-ए-जदा बतलायी नही
लोग हँसते गर जान जाते उन दिनों

तेज चलती ही गयी ये  जिंदगी
लाख ठोकर उसने खायी उन दिनों

कहते हैं क्यों राज तुमने अब बतलाई
तेरी आँखे बंद थी क्या उन दिनों

हमको यूँ नसीहत दिया न कीजिए
कान्हा से क्यों प्रीत बढ़ाई उन दिनों

कन्हैया सिंह “कान्हा”

कन्हैया सिंह 'कान्हा'

नवादा, छपरा, बिहार ईमेल- [email protected]