ग़ज़ल, बह्र-22 22 22 22, काफ़िया-आर, रदीफ़ – दे मुझको……. ॐ जय माँ शारदा…….!
“गज़ल”
थोड़ा थोड़ा प्यार दे मुझको
कर्ज सही पर यार दे मुझको
पल आता इंतजार बिना कब
कल की रात सवार दे मुझको।।
बैठी नाव निरखती तुझको
दरिया पार उतार दे मुझको।।
छा आँखों में सपन बसाया
चंदा सा उपहार दे मुझको।।
दौर मुश्किलों का देखा है
अब फूलों का हार दे मुझको।।
द्वंद दिया जीवन को मेरे
ला मल मलम करार दे मुझको।।
गौतम फिर मत रूठे रहना
शाम नहीं भिनसार दे मुझको।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी